Wednesday, 4 June 2025

गंगा दशहरा 2025: पवित्र स्नान, धार्मिक महत्व, पूजा विधि और विशेष परंपराएं

 


गंगा दशहरा 2025: पवित्र स्नान, धार्मिक महत्व, पूजा विधि और विशेष परंपराएं

गंगा दशहरा हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र पर्व है, जो हर साल ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन को गंगा माता के पृथ्वी पर अवतरण के रूप में श्रद्धा से मनाया जाता है। इस वर्ष गंगा दशहरा 5 जून 2025, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य और गंगा माता की पूजा का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं इसके महत्व, पूजन विधि, परंपराएं और गंगा लहरी का पाठ।


🗓️ गंगा दशहरा 2025 की तिथि और मुहूर्त

🔹 दशमी तिथि प्रारंभ: 4 जून 2025 को रात्रि 11:19 बजे
🔹 दशमी तिथि समाप्त: 5 जून 2025 को रात्रि 11:35 बजे
🔹 मुख्य स्नान एवं पूजा का समय: 5 जून को सूर्योदय से पहले से लेकर पूरे दिनभर


🌊 गंगा दशहरा का महत्व

पौराणिक मान्यता के अनुसार, राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा माता स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुईं। इस दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य के दस प्रकार के पाप नष्ट होते हैं। इसलिए इसे “दशहरा” कहा जाता है।

दस पापों का नाश
✅ तीन शारीरिक पाप (हत्या, चोरी, परस्त्री गमन)
✅ चार वाचिक पाप (झूठ, कठोर वचन, निंदा, व्यर्थ वार्ता)
✅ तीन मानसिक पाप (द्वेष, असत्य विचार, लालसा)


🕉️ गंगा दशहरा की पूजा विधि

1️⃣ प्रातःकाल स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2️⃣ घर पर या गंगा घाट पर गंगा माता की मूर्ति/चित्र स्थापित करें।
3️⃣ गंगाजल से स्नान या आचमन करें।
4️⃣ पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल अर्पित करें।
5️⃣ “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
6️⃣ गंगा लहरी का पाठ करें।
7️⃣ जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, जलपात्र, पंखा आदि दान करें।
8️⃣ गंगा आरती में भाग लें, या दीपदान करें।


📜 गंगा लहरी का पाठ (संक्षिप्त अंश)

गंगा लहरी महाकवि पंडित जगन्नाथ द्वारा रचित है। इसके पाठ से गंगा माता शीघ्र प्रसन्न होती हैं। यहाँ इसके कुछ प्रमुख श्लोक प्रस्तुत हैं:

जय जय जय हे भागीरथि करुणापूरित जलधे।
जयति जनानां जीवनमंगल दायकि।

त्रिभुवन तारिणि तरल तरंगिनी तरसा।
तव जलजन्मनि जनित जनपावनि।

आपदामपनुदे अद्भुत चरित्रे।
त्रिविध तापत्रय शमनी भवसिन्धो।

भक्ताभीष्टफलप्रदायिनी गंगे।
जयति जय गंगे भवसागर तरिणि।

गंगा लहरी का संपूर्ण पाठ करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी पापों का क्षय होता है।


🏞️ वाराणसी और हरिद्वार की विशेष परंपराएं

🔶 वाराणसी:
वाराणसी में दशहरा के दिन गंगा घाटों पर विशेष सजावट होती है। दशमी तिथि पर दशाश्वमेध घाट पर विशाल आरती होती है। श्रद्धालु दीपदान करते हैं और गंगा जल से स्नान कर मोक्ष की कामना करते हैं। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।

🔶 हरिद्वार:
हरिद्वार में हर की पौड़ी पर भव्य गंगा स्नान होता है। लाखों श्रद्धालु गंगा जल में डुबकी लगाकर पापों से मुक्ति पाते हैं। शाम को हर की पौड़ी पर होने वाली गंगा आरती अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है। चारों ओर घंटियों की ध्वनि और मंत्रोच्चार वातावरण को दिव्य बना देते हैं।


🌿 पौराणिक संदर्भ

🔹 महाभारत में भी गंगा का वर्णन आता है – देवी गंगा, भीष्म पितामह की माता थीं।
🔹 स्कंद पुराण, पद्म पुराण और वाल्मीकि रामायण में गंगा अवतरण की कथा मिलती है।
🔹 पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, गंगा जल से स्नान और आचमन करने से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि होती है।


🌱 गंगा दशहरा: प्रकृति और स्वच्छता का संदेश

गंगा दशहरा केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि जल संरक्षण का भी संदेश देता है। गंगा को जीवनदायिनी माना गया है, और इसे स्वच्छ रखना हमारा कर्तव्य है। आइए इस दिन हम यह संकल्प लें कि हम गंगा को प्रदूषण से मुक्त रखने में अपनी भूमिका निभाएंगे।


✨ निष्कर्ष

गंगा दशहरा आस्था, पवित्रता और संस्कृति का पर्व है। इस दिन गंगा माता की उपासना, गंगा स्नान और दान-पुण्य करके हम अपने जीवन को पवित्र बना सकते हैं। आइए इस गंगा दशहरा पर गंगा लहरी का पाठ करें, गंगा स्नान करें, और गंगा माता के संरक्षण का संकल्प लें।

हर हर गंगे! 

माँ धूमावती: धुएँ की देवी, विसर्जन और ज्ञान की प्रतीक

 

Dhumavati

धूमावती: धुएँ की देवी, विसर्जन और ज्ञान की प्रतीक

प्रकाशित तिथि: 4 जून 2025 | श्रेणी: तांत्रिक परंपराएँ | लेखक: अनंतबोध


माँ भगवती धूमावती, तांत्रिक हिन्दू धर्म में दस महाविद्याओं में से सातवीं देवी हैं। वे जीवन की उन छिपी हुई सच्चाइयों की याद दिलाती हैं, जिन्हें अक्सर हम अनदेखा कर देते हैं। धूमावती को "धुएँ की देवी" कहा जाता है। वे शून्यता, हानि, गरीबी, बुढ़ापे और मृत्यु जैसी शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं—वे सच्चाइयाँ जो जीवन के पथ पर आध्यात्मिक जागृति के लिए आवश्यक हैं।


भयावह पर दयामयी उपस्थिति

अन्य देवी स्वरूपों के विपरीत, धूमावती एक वृद्ध विधवा के रूप में प्रकट होती हैं। उनका रंग धूसर या काला होता है, शरीर दुर्बल दिखता है, बाल बिखरे हुए होते हैं और वे फटे-पुराने वस्त्र धारण करती हैं। वे बिना घोड़े वाले रथ पर सवार रहती हैं, जिसे "रथ" (रथ) कहा जाता है। यह रथ उनके आत्मनिर्भर और कालातीत स्वरूप का संकेत देता है। कई बार वे कौवे पर सवार दिखाई देती हैं—जो मृत्यु और अंत की ओर इशारा करता है।

वे अपने हाथों में सूप (अर्थात् धान्य छानने की टोकरी) धारण करती हैं, जो सत्य और असत्य के बीच भेद करने का प्रतीक है। उनके हाथों की अभय मुद्रा (सुरक्षा का संकेत) और वरद मुद्रा (आशीर्वाद का संकेत) दर्शाती है कि यद्यपि उनका स्वरूप भयावह है, परंतु वे दयामयी और ज्ञानदायिनी भी हैं।


तांत्रिक उत्पत्ति की कथाएँ

शक्तिसंगम तंत्र (शक्तिसङ्गम तन्त्र) के अनुसार, धूमावती का जन्म सती के अग्निकुंड में आत्मदाह से निकले धुएँ से हुआ। यह उत्पत्ति जीवन के सबसे कष्टदायक क्षणों से भी गहन आध्यात्मिक बोध की संभावना को दर्शाती है।

प्रणतोषिणी तंत्र (प्रणतोषिणी तन्त्र) के अनुसार, सती ने एक बार भूख से व्याकुल होकर स्वयं शिव को ही निगल लिया। जब उन्होंने शिव को वापस नहीं किया, तो शिव ने उन्हें विधवा होने का शाप दे दिया और वे धूमावती के रूप में प्रकट हुईं। यह कथा हानि, अलगाव और वैराग्य से जुड़े गहरे आध्यात्मिक अर्थों की ओर संकेत करती है।


प्रतिमाओं में गूढ़ प्रतीक

धूमावती की छवि अनेक गूढ़ प्रतीकों से परिपूर्ण है:

  • धूसर या काला रंग: जीवनचक्र का अंत, क्षय और मृत्यु।

  • विधवा का रूप: सामाजिक दृष्टि से अपवित्र परंतु सांसारिक बंधनों से मुक्त।

  • बिखरे बाल और गंदे वस्त्र: मोह-माया से विमुक्ति।

  • कौवा और रथ: मृत्यु और परिवर्तन का प्रतीक, रथ बिना घोड़े के, कालातीतता का संकेत।

  • सूप (सूपा): असत्य से सत्य को छांटने की क्षमता।

ये सभी प्रतीक जीवन के क्षणभंगुर और माया-जालमय स्वरूप को समझने के लिए साधक को प्रेरित करते हैं।


पूजा और साधना

धूमावती की साधना विशेष रूप से तांत्रिक परंपरा में होती है और सामान्य पूजा स्थलों से अलग, श्मशान भूमि, निर्जन वन या सुनसान स्थानों में रात्रिकाल में की जाती है। ये स्थल जीवन-मृत्यु और भौतिकता-अभौतिकता की सीमाओं को मिटा देते हैं।

सामान्य अर्पण (चढ़ावे):

  • काले तिल

  • सरसों का तेल

  • कड़वे या कच्चे फल

  • गुड़हल (जबा) के फूल

  • तेल के दीपक

मंत्र साधना:

“धूम धूम धूमावती स्वाहा”

यह मंत्र साधकों को उनकी शक्ति और ज्ञान से जोड़ता है, साथ ही जीवन की क्षणभंगुरता को समझने की दृष्टि देता है।


कौन करते हैं धूमावती की उपासना?

धूमावती की पूजा उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त मानी जाती है, जिन्होंने हानि या शून्यता का अनुभव किया हो, या जो गृहस्थ जीवन से दूर, वैराग्य और साधना के मार्ग पर चल रहे हों। वे स्मरण कराती हैं कि हर अंत, हर अभाव, हमें आत्मसाक्षात्कार और मोक्ष की ओर ले जा सकता है।


विसर्जन के माध्यम से ज्ञान

हालाँकि उनका स्वरूप भयावह और अशुभ प्रतीत होता है, परंतु धूमावती की ऊर्जा में अपार करुणा छुपी हुई है। वे सिखाती हैं कि जीवन के दुखद पहलू भी आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक हैं। धूमावती हमें द्वैत—शुभ-अशुभ, सुंदर-असुंदर—से परे देखने और अंततः अद्वैत की अनुभूति करने के लिए प्रेरित करती हैं।

धूमावती हमें दिखाती हैं कि शून्यता और विसर्जन के भीतर ही वास्तविक रूपांतरण और अंतिम मुक्ति का मार्ग छुपा हुआ है।


संदर्भ ग्रंथ:

  • शक्तिसंगम तंत्र

  • प्रणतोषिणी तंत्र

  • दस महाविद्याएँ — डेविड किंसले

  • हिम्न टू द गॉडेस एंड हिम्न टू काली — आर्थर एवलॉन



Tuesday, 3 June 2025

श्री यंत्र मंदिर, हरिद्वार: एक आध्यात्मिक शक्ति उपासना केंद्र

 




श्री यंत्र मंदिर, हरिद्वार: एक आध्यात्मिक शक्ति उपासना केंद्र

परिचय

हरिद्वार, उत्तराखंड में पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित श्री यंत्र मंदिर, भारत के सबसे प्रतिष्ठित शक्ति उपासना केंद्रों में से एक है। इस मंदिर की स्थापना 1991 में निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर ब्रह्मलीन स्वामी श्री विश्वदेवानंद पुरी जी महाराज ने की थी। यह विश्व का पहला श्री यंत्र मंदिर है, जो लाल पत्थर से निर्मित है, और यह भक्तों, साधकों और आध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल है। यह मंदिर न केवल पूजा और दर्शन का केंद्र है, बल्कि ध्यान, योग, और आत्म-जागृति के लिए भी एक प्रमुख स्थान है।

मंदिर का इतिहास और स्थापना

श्री यंत्र मंदिर की स्थापना स्वामी श्री विश्वदेवानंद पुरी जी महाराज ने विश्व कल्याण साधनायतन के तहत की थी, जो उनके द्वारा हरिद्वार में स्थापित एक प्रमुख संगठन है। स्वामी जी का जन्म 12 दिसंबर 1949 को उत्तर प्रदेश के कानपुर संभाग के नौगांव गाँव में कैलाश नाथ शुक्ला के रूप में एक पवित्र ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनकी रुचि आध्यात्मिकता और वैदिक शास्त्रों में थी, जिसने उन्हें सन्यासी जीवन अपनाने और मानव कल्याण के लिए समर्पित होने के लिए प्रेरित किया। 1962 में, उन्होंने परम तपस्वी अनंत श्री विभूषित आचार्य महामंडलेश्वर निर्वाण पीठाधीश्वर स्वामी अतुलानंद जी से सन्यास दीक्षा ली और परमहंस परिव्राजकाचार्य स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज के रूप में जाने गए।

स्वामी जी ने वेद, उपनिषद, भगवद गीता, रामायण, और अन्य पूर्वी और पश्चिमी दर्शनों का गहन अध्ययन किया। उनकी दृष्टि थी "वसुधैव कुटुंबकम" – अर्थात्, समस्त विश्व एक दैवीय परिवार है। इस दृष्टिकोण के साथ, उन्होंने श्री यंत्र मंदिर की स्थापना की, जो भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि का प्रतीक है। यह मंदिर कनखल, हरिद्वार में स्थित है, जो दक्ष प्रजापति मंदिर से मात्र 300 मीटर की दूरी पर है। मंदिर का निर्माण कार्य 1991 में शुरू हुआ और यह आज भी भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक आश्रय स्थल के रूप में कार्य करता है।

मंदिर की विशेषताएं और संरचना

श्री यंत्र मंदिर एक शक्ति उपासना केंद्र है, जो भगवती ललिता त्रिपुरा सुंदरी को समर्पित है। त्रिपुरा सुंदरी, दस महाविद्याओं में से तृतीय महाविद्या, को षोडशी (सोलह वर्षीय कन्या) के रूप में दर्शाया जाता है, जो सोलह प्रकार की इच्छाओं का प्रतीक है। मंदिर का मुख्य आकर्षण श्री यंत्र है, जो नौ अंतःस्थापित त्रिकोणों से बना है, जो 43 छोटे त्रिकोण बनाते हैं। ये त्रिकोण दो कमल-पंखुड़ियों के घेरों और एक टी-आकार के चतुष्कोणीय ढांचे में समाहित हैं। यंत्र के केंद्र में बिंदु, जिसे बिंदु कहते हैं, शुद्ध चेतना का प्रतीक है। श्री यंत्र को सभी यंत्रों में सर्वोच्च माना जाता है, जो भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि को आकर्षित करता है।

मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा एक आश्रम, योग-ध्यान कक्ष, एक पूर्ण सुसज्जित पुस्तकालय, और गंगा के तट पर एक निजी स्नान घाट शामिल है। मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक हिंदू शैली में निर्मित है, जिसमें तारों के डिज़ाइन वाली बाहरी दीवारें इसे विशिष्ट बनाती हैं। यह परिसर न केवल पूजा के लिए, बल्कि साधना, ध्यान, और सेवा के लिए भी एक आदर्श स्थान है।

आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व

श्री यंत्र मंदिर भक्तों और साधकों को आध्यात्मिकता, योग, और वैदिक ज्ञान की खोज के लिए एक मंच प्रदान करता है। यह मंदिर श्रीविद्या की साधना का केंद्र है, जो वेदांतिक ज्ञान का प्रतीक है। श्रीविद्या के अनुसार, त्रिपुरा सुंदरी समस्त विश्व को ब्रह्म के रूप में देखने की शुद्ध दृष्टि प्रदान करती हैं, जहां संसार और निर्वाण एक हो जाते हैं।

मंदिर में चैत्र (अप्रैल) और अश्विन (अक्टूबर) मास में नवरात्रि के दौरान बड़े समागम आयोजित होते हैं। मां त्रिपुरा सुंदरी का पाठोत्सव अप्रैल माह में मनाया जाता है। इसके अलावा, शिवरात्रि, जन्माष्टमी, और अन्य प्रमुख त्योहारों के दौरान मंदिर भक्तों से भरा रहता है। मंदिर की दैनिक पूजा और आरती का समय निम्नलिखित है:

  • मंगल आरती: सुबह 6:00 से 7:00 बजे तक

  • राज श्री आरती: दोपहर 11:00 से 11:30 बजे तक

  • मुख्य आरती: शाम 7:15 से 8:30 बजे तक

  • शयन आरती: रात 10:00 बजे

मंदिर में भक्त अपनी इच्छानुसार पूजा, यज्ञ, या लंगर प्रायोजित कर सकते हैं। मंदिर प्रशासन भक्तों के लिए प्रसाद को उनके घर तक कूरियर के माध्यम से भेजने की व्यवस्था भी करता है।

विश्व कल्याण साधनायतन आश्रम

श्री यंत्र मंदिर के साथ संलग्न विश्व कल्याण साधनायतन आश्रम भक्तों और साधकों के लिए आवास प्रदान करता है। आश्रम में लगभग 70 सुसज्जित और स्वच्छ कमरे उपलब्ध हैं, जहां भक्त ध्यान, साधना, और सेवा में समय बिता सकते हैं। आश्रम में आयुर्वेदिक सिद्धांतों पर आधारित सात्विक भोजन की व्यवस्था है। यह आश्रम सभी धर्मों और राष्ट्रीयताओं के लोगों के लिए खुला है, जो शांति, आध्यात्मिक साधना, और आत्म-जागृति की खोज में हैं।

आश्रम में विभिन्न सांस्कृतिक, शैक्षिक, और आध्यात्मिक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं, जिनमें भक्त अपनी इच्छानुसार भाग ले सकते हैं। यह स्थान उन लोगों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो मां त्रिपुरा सुंदरी की उपासना करना चाहते हैं।

स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज का योगदान

स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज ने न केवल श्री यंत्र मंदिर की स्थापना की, बल्कि विश्व कल्याण साधनायतन के माध्यम से सामाजिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए कई कार्य किए। उन्होंने गरीब ब्राह्मण छात्रों और सन्यासियों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर थे और हरिद्वार, वाराणसी, कोलकाता, और अहमदाबाद में विभिन्न आश्रमों के अध्यक्ष रहे।

उनके शिष्य, श्री अनंतबोध चैतन्य, जो 13 अप्रैल 2005 को दीक्षित हुए, उनके कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं। अनंतबोध चैतन्य ने श्री यंत्र और श्रीविद्या पर कई व्याख्यान दिए, जिनमें से कुछ मंदिर की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। वे वर्तमान में लिथुआनिया में स्वामी विश्वदेवानंद योग वेदांत आश्रम की स्थापना में व्यस्त हैं।

स्वामी जी ने 30 वर्षों तक सनातन धर्म के प्रचारक के रूप में धार्मिक प्रवचन दिए, जिन्होंने हजारों लोगों के जीवन को बदल दिया। उनकी सरल, वैज्ञानिक, और रोचक प्रस्तुति ने वैदिक दर्शन को जन-जन तक पहुंचाया। दुर्भाग्यवश, 7 मई 2013 को देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से आश्रम लौटते समय एक कार दुर्घटना में उनकी महासमाधि हो गई। उनकी मृत्यु मानवता के लिए एक बड़ी क्षति थी।

मंदिर तक पहुंच

श्री यंत्र मंदिर हरिद्वार में कनखल में स्थित है, जो दिल्ली से 208 किलोमीटर और देहरादून से 52 किलोमीटर की दूरी पर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए निम्नलिखित साधन उपलब्ध हैं:

  1. कार द्वारा: दिल्ली-हरिद्वार मार्ग पर स्वामी श्रद्धानंद चौक (सिंघद्वार) से दाहिनी ओर लक्सर रोड पर मुड़ें। आश्रम एक किलोमीटर की दूरी पर है, जहां मंदिर का साइनबोर्ड दिशा-निर्देश देता है।

  2. रेल द्वारा: हरिद्वार जंक्शन तक दिल्ली से कई ट्रेनें उपलब्ध हैं। स्टेशन से मंदिर तक टैक्सी या ऑटो-रिक्शा लिया जा सकता है।

  3. हवाई मार्ग से: निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट, देहरादून में है, जो मंदिर से 26 किलोमीटर दूर है। वहां से टैक्सी या बस द्वारा हरिद्वार पहुंचा जा सकता है।

मंदिर का महत्व और वैश्विक प्रभाव

श्री यंत्र मंदिर विश्व भर से भक्तों और साधकों को आकर्षित करता है, जिनमें अमेरिका, यूरोप, और इंग्लैंड के लोग शामिल हैं। स्वामी विश्वदेवानंद जी के सत्संग में भाग लेने के लिए हजारों लोग हरिद्वार आते थे। उनके शिष्य, जैसे अनंतबोध चैतन्य, ने उनके दर्शन को विश्व स्तर पर फैलाया, विशेष रूप से माल्टा, रूस, लिथुआनिया, स्पेन, इंडोनेशिया, और थाईलैंड जैसे देशों में।

मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह आध्यात्मिक शिक्षा और सामाजिक कल्याण का केंद्र भी है। यहाँ के योग और ध्यान कक्ष पतंजलि की शिक्षाओं पर आधारित हैं, जो साधकों को आत्म-जागृति की ओर ले जाते हैं।

निष्कर्ष

श्री यंत्र मंदिर, हरिद्वार, स्वामी श्री विश्वदेवानंद पुरी जी महाराज की दूरदर्शिता और आध्यात्मिक समर्पण का प्रतीक है। यह मंदिर भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि का संगम है, जो साधकों को शांति, ज्ञान, और आत्म-जागृति प्रदान करता है। चाहे आप एक भक्त हों, साधक हों, या आध्यात्मिक जिज्ञासु, यह मंदिर आपको अपने भीतर की उच्च सच्चाई से जोड़ने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। मां त्रिपुरा सुंदरी और श्री यंत्र की कृपा से, यह स्थान विश्व भर में आध्यात्मिकता का प्रकाश फैला रहा है।

संपर्क जानकारी:

  • पता: श्री यंत्र मंदिर, विश्व कल्याण साधनायतन, कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड, भारत

  • फोन: +91-01334-246918, 9810223465

  • ईमेल: shriyantramandir@gmail.com

Saturday, 17 May 2025

श्री यंत्र मंदिर, हरिद्वार — माँ त्रिपुर सुंदरी की दिव्य उपासना स्थली

 


श्री यंत्र मंदिर, हरिद्वार — माँ त्रिपुर सुंदरी की दिव्य उपासना स्थली

लेखक: अनंतबोध चैतन्य | श्रेणी: तीर्थ, मंदिर दर्शन, श्रीविद्या साधना | भाषा: हिंदी


परिचय

हरिद्वार — गंगा के किनारे बसा वह पवित्र नगर जहाँ हर साँस में अध्यात्म गूंजता है। यहीं स्थित है एक दुर्लभ, जाग्रत और अत्यंत शक्तिशाली मंदिर — श्री यंत्र मंदिर, जो माँ त्रिपुर सुंदरी की श्रीविद्या उपासना का जीवंत केन्द्र है।

यह मंदिर केवल एक भवन नहीं, बल्कि शक्ति, तंत्र और ध्यान का एक दिव्य संगम है।


श्री यंत्र क्या है?

श्री यंत्र को देवी त्रिपुर सुंदरी का साक्षात स्वरूप माना जाता है। यह नवावरण में स्थित एक रहस्यमयी यंत्र है जिसमें ब्रह्मांड की सम्पूर्ण शक्तियाँ संकेंद्रित होती हैं।

🔻 यह यंत्र नौ स्तरों में विभाजित होता है:

  1. त्रैलोक्य मोहन चक्र

  2. सार्वाशा परिपूरक चक्र

  3. सर्वसंक्षोभिणी चक्र

  4. सर्वसौभाग्यदायक चक्र

  5. सर्वार्थ साधक चक्र

  6. सर्वरक्षाकर चक्र

  7. सर्वरोगहर चक्र

  8. सर्वसिद्धिप्रद चक्र

  9. सर्वानंदमयी चक्र (बिंदु में देवी)

श्री यंत्र की उपासना श्रीविद्या साधना का मूल है और यह साधक को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही समृद्धियाँ प्रदान करती है।


श्री यंत्र मंदिर: स्थापत्य और ऊर्जा का चमत्कार

इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ श्री यंत्र को केवल एक प्रतीक रूप में नहीं, बल्कि तांत्रिक विज्ञान और ध्यान के सजीव केंद्र के रूप में स्थापित किया गया है।

🔹 स्थापत्य की विशेषताएँ:

  • मंदिर का संपूर्ण ढाँचा श्री यंत्र के नौ आवरणों के अनुसार बना है।

  • हर परिक्रमा में एक विशेष शक्ति और साधना अनुभव की जाती है।

  • मुख्य गर्भगृह में माँ त्रिपुर सुंदरी की ध्यानमग्न मूर्ति प्रतिष्ठित है, जो शुद्ध तांत्रिक पद्धति से जाग्रत की गई है।


स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज का योगदान

इस मंदिर की स्थापना परम पूज्य स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज ने की थी, जो स्वयं एक सिद्ध तपस्वी, श्रीविद्या उपासक और महान तांत्रिक संत थे। उनकी वर्षों की तपस्या, ध्यान और कृपा से यह स्थान आज एक शक्तिपीठ के रूप में विकसित हो चुका है।

स्वामी जी का मानना था:

"श्री यंत्र केवल पूजा का साधन नहीं, यह आत्मज्ञान और ब्रह्मानंद का प्रवेशद्वार है।"


श्री यंत्र मंदिर का महत्व साधकों के लिए

जो भी भक्त या साधक यहाँ सच्चे मन से आता है, उसे निश्चित ही माँ की कृपा का अनुभव होता है। यहाँ नियमित रूप से होने वाली नवावरण पूजन, ललिता सहस्रनाम, और श्रीचक्र आराधना में भाग लेकर साधक अपने जीवन को दिव्यता की ओर मोड़ सकता है।

यहाँ ध्यान करने मात्र से:

  • मानसिक शांति प्राप्त होती है

  • नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है

  • साधना में गति आती है

  • और माँ त्रिपुर सुंदरी की कृपा से जीवन में स्थायित्व आता है


कैसे पहुँचें?

  • स्थान: श्री यंत्र मंदिर, कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड

  • नजदीकी स्टेशन: हरिद्वार रेलवे स्टेशन (लगभग 5 किमी)

  • समय: प्रातः 5:30 से रात्रि 8:00 तक

  • विशेष पर्व: नवरात्रि, गुरु पूर्णिमा, ललिता जयंती


नमन

श्री यंत्र मंदिर केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक सजीव साधना पीठ है, जहाँ माँ की शक्ति, गुरु की कृपा और तंत्र का रहस्य एक साथ प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकता है।
यदि आप तांत्रिक साधना, ध्यान और आत्मिक उन्नति की खोज में हैं, तो इस मंदिर का दर्शन आपके जीवन में एक नया अध्याय खोल सकता है।

🙏🏼 जय माँ त्रिपुर सुंदरी।  



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Friday, 26 May 2023

Bhagwati Lalita Stuti



1. या देवी सर्वभूतेषु ललिता रूपेण संस्थिता। 
     नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ 
(Yā devī sarvabhūteṣu lalitā rūpeṇa saṁsthita। Namastasyai namastasyai namastasyai namo namaḥ॥)

Translation: Salutations to the Divine Goddess Lalita, who resides in the form of beauty in all beings.

2. चिदानन्दाम्बुजाक्षिया वदनारविन्दे 
    संसार सार पदवीं भवानि नामामि। 
(Chidānandāmbujākṣiyā vadanāravinde 
Samsāra sāra padavīṁ bhavāni nāmāmi।)

Translation: I bow to Bhavani, the lotus-eyed goddess of pure consciousness and bliss, who is the essence of existence and the pinnacle of worldly wisdom.

3. क्षीरोदधि वासिनीं विश्ववन्द्यां वेदमातरं सुद्धस्फटिकोद्भासिनीम्। 
  वन्दे विश्वेश्वरीं तव पादपङ्कजं भक्तानां निकेतां समस्तजगत्सम्भवाम्॥ (Kṣīrodadhi vāsinīṁ viśvavandyāṁ vedamātaraṁ suddhasphaṭikodbhāsinīm। 
Vande viśveśvarīṁ tava pādapankajaṁ bhaktānāṁ niketāṁ samastajagatsambhavām॥)

Translation: I adore Vishveshwari, the goddess who resides in the ocean of milk, who is worshiped by the entire universe, who is the mother of the Vedas, and whose lotus feet are the abode of devotees and the source of creation for the entire world.

4. श्यामां त्रिनयनां सुन्दरीं पञ्चब्रह्मात्मिकां पराम्। 
  त्रैलोक्याम्बा चिदानन्दां ललितां भजे चरणौ तव॥ 
(Śyāmāṁ trinayanāṁ sundarīṁ pañcabrahmātmikāṁ parām। 
Trailokyāmbā cidānandāṁ lalitāṁ bhaje caraṇau tava॥)

Translation: I worship the beautiful Lalita Devi, with a dark complexion, three eyes, and the embodiment of the five cosmic elements. She is the Divine Mother of the three worlds and the source of pure consciousness and bliss.

Tuesday, 27 December 2022

मातंगी महाविद्या


मातंगी नौवीं महाविद्या हैं।


मातंगी हिंदू देवता, ज्ञान के देवता और इसलिए ब्रह्माण्ड के निर्माता भगवान ब्रह्मा की पत्नी से संबंधित हैं। माता का वास्तव में अर्थ है कि "एक विचार" या "एक राय।" मातंगी इसलिए देवता शक्ति है जिसने विचार या मन में प्रवेश किया है। वह विचार के मूर्त होने के कारण शब्द है। वह कान के साथ संबंध और ध्यान केंद्रित करने की हमारी क्षमता से संबंधित है, यही सच्ची समझ की उत्पत्ति है जो शक्तिशाली विचार बनाती है। मातंगी सूचना, प्रतिभा और अनुभव को सबसे अच्छा मानते हैं। वह यह है कि शब्द के देवता और आंतरिक जानकारी के किसी भी बाहरी मुखरता के साथ-साथ सभी प्रकार की कला, संगीत और नृत्य। मातंगी, हिंदू देवता की तरह, वीणा बजाते हैं और सामान्य रूप से संगीत या भारी ध्वनि पर शासन करते हैं, केवल शब्द नहीं। वह गीत की अभिव्यक्ति शैली है। हिंदू देवता की तरह, वह बादल और गड़गड़ाहट का प्रतीक है, आगे समुद्र में चलने वाली नदियों द्वारा। वह यह है कि चलती ध्वनि, नाडा, जो हमारे पूरे शरीर और मस्तिष्क के नीचे से नाजुक चैनलों, नादियों के भीतर बहती है। हालांकि, मातंगी और हिंदू देवता क्षेत्र इकाई पूरी तरह से अलग है। 
मातंगी यह है कि हिंदू देवता की शैली आंतरिक जानकारी के लिए निर्देशित है। वह उसका अंधेरा, रहस्यवादी, उत्साही या जंगली प्रकार है। हिंदू देवता आमतौर पर पूरी तरह से मानक शिक्षा, कला और संस्कृति के देवता हैं। मातंगी असाधारण पर शासन करता है, जो उत्तर अमेरिकी राष्ट्र को मानक की सीमा पर बनाता है। मातंगी एक बहिष्कृत या रचनात्मक व्यक्ति है, जो समाज के मानदंडों के खिलाफ जाता है, जबकि हिंदू देवता ब्राह्मण या सीखी हुई श्रेणी की सूचना और गुण का प्रतिनिधित्व करते हैं जो नीरवता को सही नहीं करता है। मातंगी हिंदू देवता का वह हिस्सा है जो काली की काम करने वाली ऊर्जा से संबद्ध है। गुरु (आध्यात्मिक शिक्षक) शब्द के माध्यम से उत्तर अमेरिकी राष्ट्र को निर्देश देता है। इस प्रकार देवता के बीच उनका वाहन मातंगी है। 
मातंगी गुरु की शिक्षाओं और इसलिए परंपरा का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह दुनिया के भीतर धार्मिक शिक्षा की निरंतरता का प्रतिनिधित्व करती है। उसे संस्कारित करके हम गुरु का सम्मान करते हैं। दूसरों को दिखाने की मांग करने वाले, विशेष रूप से बहुत से व्यक्तियों से बात करने के लिए, मातंगी की कृपा देखने के लिए चाहिए। उपनिषदों के अनुसार, व्यक्ति का सार भाषण है। हम भाषण के माध्यम से स्पष्ट करने के लिए क्या कर रहे हैं कि सभी के अंतिम उत्पाद है कि हम जीवन में खुद को लेने के लिए करते हैं। यह अंतिम अवशेष और चित्रण जो हम भाषण के माध्यम से क्षेत्र इकाई के लिए करते हैं, मातंगी हैं। यह, हालांकि, मानक या आकस्मिक भाषण नहीं है, हालांकि, हमारे दिलों की सबसे गहरी अभिव्यक्ति है। द डिवाइन वर्ड में शक्ति, भावना और उत्सुकता है, लेकिन यह मानवीय भावना नहीं है, हालांकि दिव्य क्लाउड नौ है। 
दैवीय शब्द केवल एक सैद्धांतिक या समझदार कथन नहीं है, बल्कि ऊर्जा और प्रसन्नता का प्रवाह है। यह आनंद मातंगी का दूसरा पक्ष है। मातंगी इसलिए एक जंगली, स्पोर्टी और उत्साही देवता हैं। मातंगी देवता की मंत्रिस्तरीय शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। वह ब्रह्मांड की सर्वोच्च रानी, ​​राजराजेश्वरी या त्रिपुर सुंदरी की परामर्शदाता हैं। उसे मंत्रिनी नाम दिया गया है और सभी मंत्रों में शक्ति है, विशेष रूप से उनके गायन और अभिव्यक्ति में। वह उत्तर अमेरिकी राष्ट्र को मंत्र की सुविधा के माध्यम से सभी विपरीत देवी-देवताओं के साथ बोलने की शक्ति प्रदान करती है। वास्तव में वह सभी प्रकार की सूचना, परामर्श और शिक्षण पर शासन करती है। इन क्षेत्रों में प्रवीणता चाहने वालों को मातंगी का सम्मान करना चाहिए।
मातंगी रंग में गहरे पन्ना अनुभवहीन हैं, गहरी जानकारी और गहरा जीवन-ऊर्जा का रंग, इसके अलावा बुध का रंग है जो बुद्धि को नियंत्रित करता है। वह वीणा बजाती है, जो एक वाद्य यंत्र की तरह है, जो उसकी संगीत और गति को दर्शाता है। वह भव्य है और उत्तरी अमेरिकी राष्ट्र को मोहित करने और वश में करने के लिए कई हथियार बनाती है। इस संबंध में, उसके पास सुंदरी के रूप में गहने और हथियार हैं। वह आमतौर पर अपने हाथों में एक तोता रखने के लिए पूर्वोक्त है, जो प्रकृति में निहित के रूप में भाषण की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। वह रत्नों से निर्मित सिंहासन पर विराजमान है।