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Wednesday, 4 June 2025

माँ धूमावती: धुएँ की देवी, विसर्जन और ज्ञान की प्रतीक

 

Dhumavati

धूमावती: धुएँ की देवी, विसर्जन और ज्ञान की प्रतीक

प्रकाशित तिथि: 4 जून 2025 | श्रेणी: तांत्रिक परंपराएँ | लेखक: अनंतबोध


माँ भगवती धूमावती, तांत्रिक हिन्दू धर्म में दस महाविद्याओं में से सातवीं देवी हैं। वे जीवन की उन छिपी हुई सच्चाइयों की याद दिलाती हैं, जिन्हें अक्सर हम अनदेखा कर देते हैं। धूमावती को "धुएँ की देवी" कहा जाता है। वे शून्यता, हानि, गरीबी, बुढ़ापे और मृत्यु जैसी शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं—वे सच्चाइयाँ जो जीवन के पथ पर आध्यात्मिक जागृति के लिए आवश्यक हैं।


भयावह पर दयामयी उपस्थिति

अन्य देवी स्वरूपों के विपरीत, धूमावती एक वृद्ध विधवा के रूप में प्रकट होती हैं। उनका रंग धूसर या काला होता है, शरीर दुर्बल दिखता है, बाल बिखरे हुए होते हैं और वे फटे-पुराने वस्त्र धारण करती हैं। वे बिना घोड़े वाले रथ पर सवार रहती हैं, जिसे "रथ" (रथ) कहा जाता है। यह रथ उनके आत्मनिर्भर और कालातीत स्वरूप का संकेत देता है। कई बार वे कौवे पर सवार दिखाई देती हैं—जो मृत्यु और अंत की ओर इशारा करता है।

वे अपने हाथों में सूप (अर्थात् धान्य छानने की टोकरी) धारण करती हैं, जो सत्य और असत्य के बीच भेद करने का प्रतीक है। उनके हाथों की अभय मुद्रा (सुरक्षा का संकेत) और वरद मुद्रा (आशीर्वाद का संकेत) दर्शाती है कि यद्यपि उनका स्वरूप भयावह है, परंतु वे दयामयी और ज्ञानदायिनी भी हैं।


तांत्रिक उत्पत्ति की कथाएँ

शक्तिसंगम तंत्र (शक्तिसङ्गम तन्त्र) के अनुसार, धूमावती का जन्म सती के अग्निकुंड में आत्मदाह से निकले धुएँ से हुआ। यह उत्पत्ति जीवन के सबसे कष्टदायक क्षणों से भी गहन आध्यात्मिक बोध की संभावना को दर्शाती है।

प्रणतोषिणी तंत्र (प्रणतोषिणी तन्त्र) के अनुसार, सती ने एक बार भूख से व्याकुल होकर स्वयं शिव को ही निगल लिया। जब उन्होंने शिव को वापस नहीं किया, तो शिव ने उन्हें विधवा होने का शाप दे दिया और वे धूमावती के रूप में प्रकट हुईं। यह कथा हानि, अलगाव और वैराग्य से जुड़े गहरे आध्यात्मिक अर्थों की ओर संकेत करती है।


प्रतिमाओं में गूढ़ प्रतीक

धूमावती की छवि अनेक गूढ़ प्रतीकों से परिपूर्ण है:

  • धूसर या काला रंग: जीवनचक्र का अंत, क्षय और मृत्यु।

  • विधवा का रूप: सामाजिक दृष्टि से अपवित्र परंतु सांसारिक बंधनों से मुक्त।

  • बिखरे बाल और गंदे वस्त्र: मोह-माया से विमुक्ति।

  • कौवा और रथ: मृत्यु और परिवर्तन का प्रतीक, रथ बिना घोड़े के, कालातीतता का संकेत।

  • सूप (सूपा): असत्य से सत्य को छांटने की क्षमता।

ये सभी प्रतीक जीवन के क्षणभंगुर और माया-जालमय स्वरूप को समझने के लिए साधक को प्रेरित करते हैं।


पूजा और साधना

धूमावती की साधना विशेष रूप से तांत्रिक परंपरा में होती है और सामान्य पूजा स्थलों से अलग, श्मशान भूमि, निर्जन वन या सुनसान स्थानों में रात्रिकाल में की जाती है। ये स्थल जीवन-मृत्यु और भौतिकता-अभौतिकता की सीमाओं को मिटा देते हैं।

सामान्य अर्पण (चढ़ावे):

  • काले तिल

  • सरसों का तेल

  • कड़वे या कच्चे फल

  • गुड़हल (जबा) के फूल

  • तेल के दीपक

मंत्र साधना:

“धूम धूम धूमावती स्वाहा”

यह मंत्र साधकों को उनकी शक्ति और ज्ञान से जोड़ता है, साथ ही जीवन की क्षणभंगुरता को समझने की दृष्टि देता है।


कौन करते हैं धूमावती की उपासना?

धूमावती की पूजा उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त मानी जाती है, जिन्होंने हानि या शून्यता का अनुभव किया हो, या जो गृहस्थ जीवन से दूर, वैराग्य और साधना के मार्ग पर चल रहे हों। वे स्मरण कराती हैं कि हर अंत, हर अभाव, हमें आत्मसाक्षात्कार और मोक्ष की ओर ले जा सकता है।


विसर्जन के माध्यम से ज्ञान

हालाँकि उनका स्वरूप भयावह और अशुभ प्रतीत होता है, परंतु धूमावती की ऊर्जा में अपार करुणा छुपी हुई है। वे सिखाती हैं कि जीवन के दुखद पहलू भी आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक हैं। धूमावती हमें द्वैत—शुभ-अशुभ, सुंदर-असुंदर—से परे देखने और अंततः अद्वैत की अनुभूति करने के लिए प्रेरित करती हैं।

धूमावती हमें दिखाती हैं कि शून्यता और विसर्जन के भीतर ही वास्तविक रूपांतरण और अंतिम मुक्ति का मार्ग छुपा हुआ है।


संदर्भ ग्रंथ:

  • शक्तिसंगम तंत्र

  • प्रणतोषिणी तंत्र

  • दस महाविद्याएँ — डेविड किंसले

  • हिम्न टू द गॉडेस एंड हिम्न टू काली — आर्थर एवलॉन