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Wednesday, 4 June 2025

गंगा दशहरा 2025: पवित्र स्नान, धार्मिक महत्व, पूजा विधि और विशेष परंपराएं

 


गंगा दशहरा 2025: पवित्र स्नान, धार्मिक महत्व, पूजा विधि और विशेष परंपराएं

गंगा दशहरा हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र पर्व है, जो हर साल ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन को गंगा माता के पृथ्वी पर अवतरण के रूप में श्रद्धा से मनाया जाता है। इस वर्ष गंगा दशहरा 5 जून 2025, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य और गंगा माता की पूजा का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं इसके महत्व, पूजन विधि, परंपराएं और गंगा लहरी का पाठ।


🗓️ गंगा दशहरा 2025 की तिथि और मुहूर्त

🔹 दशमी तिथि प्रारंभ: 4 जून 2025 को रात्रि 11:19 बजे
🔹 दशमी तिथि समाप्त: 5 जून 2025 को रात्रि 11:35 बजे
🔹 मुख्य स्नान एवं पूजा का समय: 5 जून को सूर्योदय से पहले से लेकर पूरे दिनभर


🌊 गंगा दशहरा का महत्व

पौराणिक मान्यता के अनुसार, राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा माता स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुईं। इस दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य के दस प्रकार के पाप नष्ट होते हैं। इसलिए इसे “दशहरा” कहा जाता है।

दस पापों का नाश
✅ तीन शारीरिक पाप (हत्या, चोरी, परस्त्री गमन)
✅ चार वाचिक पाप (झूठ, कठोर वचन, निंदा, व्यर्थ वार्ता)
✅ तीन मानसिक पाप (द्वेष, असत्य विचार, लालसा)


🕉️ गंगा दशहरा की पूजा विधि

1️⃣ प्रातःकाल स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2️⃣ घर पर या गंगा घाट पर गंगा माता की मूर्ति/चित्र स्थापित करें।
3️⃣ गंगाजल से स्नान या आचमन करें।
4️⃣ पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल अर्पित करें।
5️⃣ “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
6️⃣ गंगा लहरी का पाठ करें।
7️⃣ जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, जलपात्र, पंखा आदि दान करें।
8️⃣ गंगा आरती में भाग लें, या दीपदान करें।


📜 गंगा लहरी का पाठ (संक्षिप्त अंश)

गंगा लहरी महाकवि पंडित जगन्नाथ द्वारा रचित है। इसके पाठ से गंगा माता शीघ्र प्रसन्न होती हैं। यहाँ इसके कुछ प्रमुख श्लोक प्रस्तुत हैं:

जय जय जय हे भागीरथि करुणापूरित जलधे।
जयति जनानां जीवनमंगल दायकि।

त्रिभुवन तारिणि तरल तरंगिनी तरसा।
तव जलजन्मनि जनित जनपावनि।

आपदामपनुदे अद्भुत चरित्रे।
त्रिविध तापत्रय शमनी भवसिन्धो।

भक्ताभीष्टफलप्रदायिनी गंगे।
जयति जय गंगे भवसागर तरिणि।

गंगा लहरी का संपूर्ण पाठ करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी पापों का क्षय होता है।


🏞️ वाराणसी और हरिद्वार की विशेष परंपराएं

🔶 वाराणसी:
वाराणसी में दशहरा के दिन गंगा घाटों पर विशेष सजावट होती है। दशमी तिथि पर दशाश्वमेध घाट पर विशाल आरती होती है। श्रद्धालु दीपदान करते हैं और गंगा जल से स्नान कर मोक्ष की कामना करते हैं। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।

🔶 हरिद्वार:
हरिद्वार में हर की पौड़ी पर भव्य गंगा स्नान होता है। लाखों श्रद्धालु गंगा जल में डुबकी लगाकर पापों से मुक्ति पाते हैं। शाम को हर की पौड़ी पर होने वाली गंगा आरती अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है। चारों ओर घंटियों की ध्वनि और मंत्रोच्चार वातावरण को दिव्य बना देते हैं।


🌿 पौराणिक संदर्भ

🔹 महाभारत में भी गंगा का वर्णन आता है – देवी गंगा, भीष्म पितामह की माता थीं।
🔹 स्कंद पुराण, पद्म पुराण और वाल्मीकि रामायण में गंगा अवतरण की कथा मिलती है।
🔹 पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, गंगा जल से स्नान और आचमन करने से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि होती है।


🌱 गंगा दशहरा: प्रकृति और स्वच्छता का संदेश

गंगा दशहरा केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि जल संरक्षण का भी संदेश देता है। गंगा को जीवनदायिनी माना गया है, और इसे स्वच्छ रखना हमारा कर्तव्य है। आइए इस दिन हम यह संकल्प लें कि हम गंगा को प्रदूषण से मुक्त रखने में अपनी भूमिका निभाएंगे।


✨ निष्कर्ष

गंगा दशहरा आस्था, पवित्रता और संस्कृति का पर्व है। इस दिन गंगा माता की उपासना, गंगा स्नान और दान-पुण्य करके हम अपने जीवन को पवित्र बना सकते हैं। आइए इस गंगा दशहरा पर गंगा लहरी का पाठ करें, गंगा स्नान करें, और गंगा माता के संरक्षण का संकल्प लें।

हर हर गंगे!