Thursday, 5 June 2025

What is Shri Yantra?





Shri Yantra: The Sacred Geometry of Cosmic Energy and Spiritual Power

The Shri Yantra (also spelled Sri Yantra or Shree Yantra) stands as one of the most revered and potent mystical diagrams in Hinduism, Tantra, and Vedic spirituality. Dubbed the "King of Yantras," it symbolizes the cosmic union of Divine Masculine (Shiva) and Divine Feminine (Shakti) energies, serving as a powerful tool for wealth, spiritual awakening, and the attainment of ultimate consciousness.

1. What is Shri Yantra?

The Shri Yantra is a sacred geometric pattern comprising:

  • Nine interlocking triangles: Four upward-facing (representing Shiva) and five downward-facing (representing Shakti).
  • Multiple concentric layers: Symbolizing various stages of spiritual evolution.
  • central point (Bindu): Denoting the Supreme Consciousness (Brahman).

This intricate design is regarded as a microcosmic representation of the universe, offering a meditative tool, a means of manifestation, and a conduit for divine blessings.

2. Structure and Symbolism of Shri Yantra

The Nine Interlocking Triangles

  • Five Downward Triangles (Shakti / Feminine Energy): Embody Prakriti (Nature), creation, and material abundance.
  • Four Upward Triangles (Shiva / Masculine Energy): Reflect pure consciousness, stability, and liberation.
  • Their intersection creates 43 smaller triangles, symbolizing the cosmic balance between creation and dissolution.

3. Types of Shri Yantra

  • Meru Shri Yantra (3D Pyramid): Considered the most powerful, commonly used in temples.
  • 2D Shri Yantra: Ideal for home worship, meditation, and personal altars.
  • Bhojpatra Shri Yantra (Written on Bark): Employed in advanced tantric rituals for deeper spiritual practices.

4. Spiritual and Material Benefits of Shri Yantra

  • ✅ Wealth and Prosperity: Linked to Goddess Lakshmi, it attracts abundance and financial stability.
  • ✅ Removes Negative Energy: Balances Vastu defects and purifies the surrounding environment.
  • ✅ Enhances Meditation: Facilitates Kundalini awakening and elevates consciousness.
  • ✅ Manifestation Power: Utilized in Tantra and Sri Vidya Sadhana to fulfill desires.
  • ✅ Health and Harmony: Promotes mental peace, emotional stability, and overall well-being.

5. How to Worship Shri Yantra? (Step-by-Step Puja Vidhi)

A. Best Time to Install

  • Friday (dedicated to Lakshmi) or Full Moon Night (Purnima).
  • Morning (Brahma Muhurta: 4-6 AM) is optimal for energizing the Yantra.

B. Placement and Direction

  • Position in the Northeast (Ishaan corner) of the home or temple.
  • Place on a red or yellow cloth or a silver/copper plate for reverence.

C. Puja Rituals

  • Purification: Cleanse with Ganga Jal or rose water.
  • Energization: Apply sandalwood paste, kumkum, and turmeric.
  • Mantra Chanting: Recite "Om Shreem Mahalakshmiyei Namah" 108 times for maximum effect.
  • Offerings: Light a ghee lamp, offer flowers, fruits, and incense.
  • Meditation: Focus on the Bindu (central point) to forge a deep spiritual connection.

6. Precautions and Rules

  • ❌ Never place on the floor: Keep it elevated to maintain sanctity.
  • ❌ Do not touch without cleansing: Ensure purity before handling.
  • ❌ Avoid broken/damaged Yantra: Replace if cracked to preserve its energy.
  • ❌ Negative thoughts while worshipping: Such thoughts may diminish its potency.

7. Scientific and Energetic Significance

  • Sacred Geometry: The Shri Yantra’s structure aligns with Fibonacci sequences and fractal patterns observed in nature.
  • Energy Vortex: Acts as a cosmic antenna, channeling positive vibrations.
  • Brainwave Synchronization: Meditation on it enhances alpha and theta brainwaves, promoting deep relaxation and focus.

8. Shri Yantra in Tantra and Sri Vidya Tradition

  • Integral to Sri Vidya Upasana, the highest form of Goddess worship.
  • Advanced practitioners meditate on the Tripura Sundari form of Devi using this Yantra.
  • Known as the Sri Chakra, it plays a central role in Kundalini Yoga practices.

Conclusion: The Ultimate Tool for Divine Connection

The Shri Yantra transcends being merely a symbol; it is a living cosmic energy field. When worshipped with devotion, it bestows material prosperity, spiritual growth, and ultimate enlightenment. Whether utilized for meditation, wealth attraction, or protection, it remains one of the most powerful instruments in Yoga, Tantra, and Vedic sciences, bridging the material and divine realms.

Wednesday, 4 June 2025

गंगा दशहरा 2025: पवित्र स्नान, धार्मिक महत्व, पूजा विधि और विशेष परंपराएं

 


गंगा दशहरा 2025: पवित्र स्नान, धार्मिक महत्व, पूजा विधि और विशेष परंपराएं

गंगा दशहरा हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र पर्व है, जो हर साल ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन को गंगा माता के पृथ्वी पर अवतरण के रूप में श्रद्धा से मनाया जाता है। इस वर्ष गंगा दशहरा 5 जून 2025, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य और गंगा माता की पूजा का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं इसके महत्व, पूजन विधि, परंपराएं और गंगा लहरी का पाठ।


🗓️ गंगा दशहरा 2025 की तिथि और मुहूर्त

🔹 दशमी तिथि प्रारंभ: 4 जून 2025 को रात्रि 11:19 बजे
🔹 दशमी तिथि समाप्त: 5 जून 2025 को रात्रि 11:35 बजे
🔹 मुख्य स्नान एवं पूजा का समय: 5 जून को सूर्योदय से पहले से लेकर पूरे दिनभर


🌊 गंगा दशहरा का महत्व

पौराणिक मान्यता के अनुसार, राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा माता स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुईं। इस दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य के दस प्रकार के पाप नष्ट होते हैं। इसलिए इसे “दशहरा” कहा जाता है।

दस पापों का नाश
✅ तीन शारीरिक पाप (हत्या, चोरी, परस्त्री गमन)
✅ चार वाचिक पाप (झूठ, कठोर वचन, निंदा, व्यर्थ वार्ता)
✅ तीन मानसिक पाप (द्वेष, असत्य विचार, लालसा)


🕉️ गंगा दशहरा की पूजा विधि

1️⃣ प्रातःकाल स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2️⃣ घर पर या गंगा घाट पर गंगा माता की मूर्ति/चित्र स्थापित करें।
3️⃣ गंगाजल से स्नान या आचमन करें।
4️⃣ पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल अर्पित करें।
5️⃣ “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
6️⃣ गंगा लहरी का पाठ करें।
7️⃣ जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, जलपात्र, पंखा आदि दान करें।
8️⃣ गंगा आरती में भाग लें, या दीपदान करें।


📜 गंगा लहरी का पाठ (संक्षिप्त अंश)

गंगा लहरी महाकवि पंडित जगन्नाथ द्वारा रचित है। इसके पाठ से गंगा माता शीघ्र प्रसन्न होती हैं। यहाँ इसके कुछ प्रमुख श्लोक प्रस्तुत हैं:

जय जय जय हे भागीरथि करुणापूरित जलधे।
जयति जनानां जीवनमंगल दायकि।

त्रिभुवन तारिणि तरल तरंगिनी तरसा।
तव जलजन्मनि जनित जनपावनि।

आपदामपनुदे अद्भुत चरित्रे।
त्रिविध तापत्रय शमनी भवसिन्धो।

भक्ताभीष्टफलप्रदायिनी गंगे।
जयति जय गंगे भवसागर तरिणि।

गंगा लहरी का संपूर्ण पाठ करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी पापों का क्षय होता है।


🏞️ वाराणसी और हरिद्वार की विशेष परंपराएं

🔶 वाराणसी:
वाराणसी में दशहरा के दिन गंगा घाटों पर विशेष सजावट होती है। दशमी तिथि पर दशाश्वमेध घाट पर विशाल आरती होती है। श्रद्धालु दीपदान करते हैं और गंगा जल से स्नान कर मोक्ष की कामना करते हैं। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।

🔶 हरिद्वार:
हरिद्वार में हर की पौड़ी पर भव्य गंगा स्नान होता है। लाखों श्रद्धालु गंगा जल में डुबकी लगाकर पापों से मुक्ति पाते हैं। शाम को हर की पौड़ी पर होने वाली गंगा आरती अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है। चारों ओर घंटियों की ध्वनि और मंत्रोच्चार वातावरण को दिव्य बना देते हैं।


🌿 पौराणिक संदर्भ

🔹 महाभारत में भी गंगा का वर्णन आता है – देवी गंगा, भीष्म पितामह की माता थीं।
🔹 स्कंद पुराण, पद्म पुराण और वाल्मीकि रामायण में गंगा अवतरण की कथा मिलती है।
🔹 पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, गंगा जल से स्नान और आचमन करने से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि होती है।


🌱 गंगा दशहरा: प्रकृति और स्वच्छता का संदेश

गंगा दशहरा केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि जल संरक्षण का भी संदेश देता है। गंगा को जीवनदायिनी माना गया है, और इसे स्वच्छ रखना हमारा कर्तव्य है। आइए इस दिन हम यह संकल्प लें कि हम गंगा को प्रदूषण से मुक्त रखने में अपनी भूमिका निभाएंगे।


✨ निष्कर्ष

गंगा दशहरा आस्था, पवित्रता और संस्कृति का पर्व है। इस दिन गंगा माता की उपासना, गंगा स्नान और दान-पुण्य करके हम अपने जीवन को पवित्र बना सकते हैं। आइए इस गंगा दशहरा पर गंगा लहरी का पाठ करें, गंगा स्नान करें, और गंगा माता के संरक्षण का संकल्प लें।

हर हर गंगे! 

माँ धूमावती: धुएँ की देवी, विसर्जन और ज्ञान की प्रतीक

 

Dhumavati

धूमावती: धुएँ की देवी, विसर्जन और ज्ञान की प्रतीक

प्रकाशित तिथि: 4 जून 2025 | श्रेणी: तांत्रिक परंपराएँ | लेखक: अनंतबोध


माँ भगवती धूमावती, तांत्रिक हिन्दू धर्म में दस महाविद्याओं में से सातवीं देवी हैं। वे जीवन की उन छिपी हुई सच्चाइयों की याद दिलाती हैं, जिन्हें अक्सर हम अनदेखा कर देते हैं। धूमावती को "धुएँ की देवी" कहा जाता है। वे शून्यता, हानि, गरीबी, बुढ़ापे और मृत्यु जैसी शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं—वे सच्चाइयाँ जो जीवन के पथ पर आध्यात्मिक जागृति के लिए आवश्यक हैं।


भयावह पर दयामयी उपस्थिति

अन्य देवी स्वरूपों के विपरीत, धूमावती एक वृद्ध विधवा के रूप में प्रकट होती हैं। उनका रंग धूसर या काला होता है, शरीर दुर्बल दिखता है, बाल बिखरे हुए होते हैं और वे फटे-पुराने वस्त्र धारण करती हैं। वे बिना घोड़े वाले रथ पर सवार रहती हैं, जिसे "रथ" (रथ) कहा जाता है। यह रथ उनके आत्मनिर्भर और कालातीत स्वरूप का संकेत देता है। कई बार वे कौवे पर सवार दिखाई देती हैं—जो मृत्यु और अंत की ओर इशारा करता है।

वे अपने हाथों में सूप (अर्थात् धान्य छानने की टोकरी) धारण करती हैं, जो सत्य और असत्य के बीच भेद करने का प्रतीक है। उनके हाथों की अभय मुद्रा (सुरक्षा का संकेत) और वरद मुद्रा (आशीर्वाद का संकेत) दर्शाती है कि यद्यपि उनका स्वरूप भयावह है, परंतु वे दयामयी और ज्ञानदायिनी भी हैं।


तांत्रिक उत्पत्ति की कथाएँ

शक्तिसंगम तंत्र (शक्तिसङ्गम तन्त्र) के अनुसार, धूमावती का जन्म सती के अग्निकुंड में आत्मदाह से निकले धुएँ से हुआ। यह उत्पत्ति जीवन के सबसे कष्टदायक क्षणों से भी गहन आध्यात्मिक बोध की संभावना को दर्शाती है।

प्रणतोषिणी तंत्र (प्रणतोषिणी तन्त्र) के अनुसार, सती ने एक बार भूख से व्याकुल होकर स्वयं शिव को ही निगल लिया। जब उन्होंने शिव को वापस नहीं किया, तो शिव ने उन्हें विधवा होने का शाप दे दिया और वे धूमावती के रूप में प्रकट हुईं। यह कथा हानि, अलगाव और वैराग्य से जुड़े गहरे आध्यात्मिक अर्थों की ओर संकेत करती है।


प्रतिमाओं में गूढ़ प्रतीक

धूमावती की छवि अनेक गूढ़ प्रतीकों से परिपूर्ण है:

  • धूसर या काला रंग: जीवनचक्र का अंत, क्षय और मृत्यु।

  • विधवा का रूप: सामाजिक दृष्टि से अपवित्र परंतु सांसारिक बंधनों से मुक्त।

  • बिखरे बाल और गंदे वस्त्र: मोह-माया से विमुक्ति।

  • कौवा और रथ: मृत्यु और परिवर्तन का प्रतीक, रथ बिना घोड़े के, कालातीतता का संकेत।

  • सूप (सूपा): असत्य से सत्य को छांटने की क्षमता।

ये सभी प्रतीक जीवन के क्षणभंगुर और माया-जालमय स्वरूप को समझने के लिए साधक को प्रेरित करते हैं।


पूजा और साधना

धूमावती की साधना विशेष रूप से तांत्रिक परंपरा में होती है और सामान्य पूजा स्थलों से अलग, श्मशान भूमि, निर्जन वन या सुनसान स्थानों में रात्रिकाल में की जाती है। ये स्थल जीवन-मृत्यु और भौतिकता-अभौतिकता की सीमाओं को मिटा देते हैं।

सामान्य अर्पण (चढ़ावे):

  • काले तिल

  • सरसों का तेल

  • कड़वे या कच्चे फल

  • गुड़हल (जबा) के फूल

  • तेल के दीपक

मंत्र साधना:

“धूम धूम धूमावती स्वाहा”

यह मंत्र साधकों को उनकी शक्ति और ज्ञान से जोड़ता है, साथ ही जीवन की क्षणभंगुरता को समझने की दृष्टि देता है।


कौन करते हैं धूमावती की उपासना?

धूमावती की पूजा उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त मानी जाती है, जिन्होंने हानि या शून्यता का अनुभव किया हो, या जो गृहस्थ जीवन से दूर, वैराग्य और साधना के मार्ग पर चल रहे हों। वे स्मरण कराती हैं कि हर अंत, हर अभाव, हमें आत्मसाक्षात्कार और मोक्ष की ओर ले जा सकता है।


विसर्जन के माध्यम से ज्ञान

हालाँकि उनका स्वरूप भयावह और अशुभ प्रतीत होता है, परंतु धूमावती की ऊर्जा में अपार करुणा छुपी हुई है। वे सिखाती हैं कि जीवन के दुखद पहलू भी आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक हैं। धूमावती हमें द्वैत—शुभ-अशुभ, सुंदर-असुंदर—से परे देखने और अंततः अद्वैत की अनुभूति करने के लिए प्रेरित करती हैं।

धूमावती हमें दिखाती हैं कि शून्यता और विसर्जन के भीतर ही वास्तविक रूपांतरण और अंतिम मुक्ति का मार्ग छुपा हुआ है।


संदर्भ ग्रंथ:

  • शक्तिसंगम तंत्र

  • प्रणतोषिणी तंत्र

  • दस महाविद्याएँ — डेविड किंसले

  • हिम्न टू द गॉडेस एंड हिम्न टू काली — आर्थर एवलॉन



Tuesday, 3 June 2025

श्री यंत्र मंदिर, हरिद्वार: एक आध्यात्मिक शक्ति उपासना केंद्र

 




श्री यंत्र मंदिर, हरिद्वार: एक आध्यात्मिक शक्ति उपासना केंद्र

परिचय

हरिद्वार, उत्तराखंड में पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित श्री यंत्र मंदिर, भारत के सबसे प्रतिष्ठित शक्ति उपासना केंद्रों में से एक है। इस मंदिर की स्थापना 1991 में निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर ब्रह्मलीन स्वामी श्री विश्वदेवानंद पुरी जी महाराज ने की थी। यह विश्व का पहला श्री यंत्र मंदिर है, जो लाल पत्थर से निर्मित है, और यह भक्तों, साधकों और आध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल है। यह मंदिर न केवल पूजा और दर्शन का केंद्र है, बल्कि ध्यान, योग, और आत्म-जागृति के लिए भी एक प्रमुख स्थान है।

मंदिर का इतिहास और स्थापना

श्री यंत्र मंदिर की स्थापना स्वामी श्री विश्वदेवानंद पुरी जी महाराज ने विश्व कल्याण साधनायतन के तहत की थी, जो उनके द्वारा हरिद्वार में स्थापित एक प्रमुख संगठन है। स्वामी जी का जन्म 12 दिसंबर 1949 को उत्तर प्रदेश के कानपुर संभाग के नौगांव गाँव में कैलाश नाथ शुक्ला के रूप में एक पवित्र ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनकी रुचि आध्यात्मिकता और वैदिक शास्त्रों में थी, जिसने उन्हें सन्यासी जीवन अपनाने और मानव कल्याण के लिए समर्पित होने के लिए प्रेरित किया। 1962 में, उन्होंने परम तपस्वी अनंत श्री विभूषित आचार्य महामंडलेश्वर निर्वाण पीठाधीश्वर स्वामी अतुलानंद जी से सन्यास दीक्षा ली और परमहंस परिव्राजकाचार्य स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज के रूप में जाने गए।

स्वामी जी ने वेद, उपनिषद, भगवद गीता, रामायण, और अन्य पूर्वी और पश्चिमी दर्शनों का गहन अध्ययन किया। उनकी दृष्टि थी "वसुधैव कुटुंबकम" – अर्थात्, समस्त विश्व एक दैवीय परिवार है। इस दृष्टिकोण के साथ, उन्होंने श्री यंत्र मंदिर की स्थापना की, जो भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि का प्रतीक है। यह मंदिर कनखल, हरिद्वार में स्थित है, जो दक्ष प्रजापति मंदिर से मात्र 300 मीटर की दूरी पर है। मंदिर का निर्माण कार्य 1991 में शुरू हुआ और यह आज भी भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक आश्रय स्थल के रूप में कार्य करता है।

मंदिर की विशेषताएं और संरचना

श्री यंत्र मंदिर एक शक्ति उपासना केंद्र है, जो भगवती ललिता त्रिपुरा सुंदरी को समर्पित है। त्रिपुरा सुंदरी, दस महाविद्याओं में से तृतीय महाविद्या, को षोडशी (सोलह वर्षीय कन्या) के रूप में दर्शाया जाता है, जो सोलह प्रकार की इच्छाओं का प्रतीक है। मंदिर का मुख्य आकर्षण श्री यंत्र है, जो नौ अंतःस्थापित त्रिकोणों से बना है, जो 43 छोटे त्रिकोण बनाते हैं। ये त्रिकोण दो कमल-पंखुड़ियों के घेरों और एक टी-आकार के चतुष्कोणीय ढांचे में समाहित हैं। यंत्र के केंद्र में बिंदु, जिसे बिंदु कहते हैं, शुद्ध चेतना का प्रतीक है। श्री यंत्र को सभी यंत्रों में सर्वोच्च माना जाता है, जो भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि को आकर्षित करता है।

मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा एक आश्रम, योग-ध्यान कक्ष, एक पूर्ण सुसज्जित पुस्तकालय, और गंगा के तट पर एक निजी स्नान घाट शामिल है। मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक हिंदू शैली में निर्मित है, जिसमें तारों के डिज़ाइन वाली बाहरी दीवारें इसे विशिष्ट बनाती हैं। यह परिसर न केवल पूजा के लिए, बल्कि साधना, ध्यान, और सेवा के लिए भी एक आदर्श स्थान है।

आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व

श्री यंत्र मंदिर भक्तों और साधकों को आध्यात्मिकता, योग, और वैदिक ज्ञान की खोज के लिए एक मंच प्रदान करता है। यह मंदिर श्रीविद्या की साधना का केंद्र है, जो वेदांतिक ज्ञान का प्रतीक है। श्रीविद्या के अनुसार, त्रिपुरा सुंदरी समस्त विश्व को ब्रह्म के रूप में देखने की शुद्ध दृष्टि प्रदान करती हैं, जहां संसार और निर्वाण एक हो जाते हैं।

मंदिर में चैत्र (अप्रैल) और अश्विन (अक्टूबर) मास में नवरात्रि के दौरान बड़े समागम आयोजित होते हैं। मां त्रिपुरा सुंदरी का पाठोत्सव अप्रैल माह में मनाया जाता है। इसके अलावा, शिवरात्रि, जन्माष्टमी, और अन्य प्रमुख त्योहारों के दौरान मंदिर भक्तों से भरा रहता है। मंदिर की दैनिक पूजा और आरती का समय निम्नलिखित है:

  • मंगल आरती: सुबह 6:00 से 7:00 बजे तक

  • राज श्री आरती: दोपहर 11:00 से 11:30 बजे तक

  • मुख्य आरती: शाम 7:15 से 8:30 बजे तक

  • शयन आरती: रात 10:00 बजे

मंदिर में भक्त अपनी इच्छानुसार पूजा, यज्ञ, या लंगर प्रायोजित कर सकते हैं। मंदिर प्रशासन भक्तों के लिए प्रसाद को उनके घर तक कूरियर के माध्यम से भेजने की व्यवस्था भी करता है।

विश्व कल्याण साधनायतन आश्रम

श्री यंत्र मंदिर के साथ संलग्न विश्व कल्याण साधनायतन आश्रम भक्तों और साधकों के लिए आवास प्रदान करता है। आश्रम में लगभग 70 सुसज्जित और स्वच्छ कमरे उपलब्ध हैं, जहां भक्त ध्यान, साधना, और सेवा में समय बिता सकते हैं। आश्रम में आयुर्वेदिक सिद्धांतों पर आधारित सात्विक भोजन की व्यवस्था है। यह आश्रम सभी धर्मों और राष्ट्रीयताओं के लोगों के लिए खुला है, जो शांति, आध्यात्मिक साधना, और आत्म-जागृति की खोज में हैं।

आश्रम में विभिन्न सांस्कृतिक, शैक्षिक, और आध्यात्मिक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं, जिनमें भक्त अपनी इच्छानुसार भाग ले सकते हैं। यह स्थान उन लोगों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो मां त्रिपुरा सुंदरी की उपासना करना चाहते हैं।

स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज का योगदान

स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज ने न केवल श्री यंत्र मंदिर की स्थापना की, बल्कि विश्व कल्याण साधनायतन के माध्यम से सामाजिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए कई कार्य किए। उन्होंने गरीब ब्राह्मण छात्रों और सन्यासियों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर थे और हरिद्वार, वाराणसी, कोलकाता, और अहमदाबाद में विभिन्न आश्रमों के अध्यक्ष रहे।

उनके शिष्य, श्री अनंतबोध चैतन्य, जो 13 अप्रैल 2005 को दीक्षित हुए, उनके कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं। अनंतबोध चैतन्य ने श्री यंत्र और श्रीविद्या पर कई व्याख्यान दिए, जिनमें से कुछ मंदिर की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। वे वर्तमान में लिथुआनिया में स्वामी विश्वदेवानंद योग वेदांत आश्रम की स्थापना में व्यस्त हैं।

स्वामी जी ने 30 वर्षों तक सनातन धर्म के प्रचारक के रूप में धार्मिक प्रवचन दिए, जिन्होंने हजारों लोगों के जीवन को बदल दिया। उनकी सरल, वैज्ञानिक, और रोचक प्रस्तुति ने वैदिक दर्शन को जन-जन तक पहुंचाया। दुर्भाग्यवश, 7 मई 2013 को देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से आश्रम लौटते समय एक कार दुर्घटना में उनकी महासमाधि हो गई। उनकी मृत्यु मानवता के लिए एक बड़ी क्षति थी।

मंदिर तक पहुंच

श्री यंत्र मंदिर हरिद्वार में कनखल में स्थित है, जो दिल्ली से 208 किलोमीटर और देहरादून से 52 किलोमीटर की दूरी पर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए निम्नलिखित साधन उपलब्ध हैं:

  1. कार द्वारा: दिल्ली-हरिद्वार मार्ग पर स्वामी श्रद्धानंद चौक (सिंघद्वार) से दाहिनी ओर लक्सर रोड पर मुड़ें। आश्रम एक किलोमीटर की दूरी पर है, जहां मंदिर का साइनबोर्ड दिशा-निर्देश देता है।

  2. रेल द्वारा: हरिद्वार जंक्शन तक दिल्ली से कई ट्रेनें उपलब्ध हैं। स्टेशन से मंदिर तक टैक्सी या ऑटो-रिक्शा लिया जा सकता है।

  3. हवाई मार्ग से: निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट, देहरादून में है, जो मंदिर से 26 किलोमीटर दूर है। वहां से टैक्सी या बस द्वारा हरिद्वार पहुंचा जा सकता है।

मंदिर का महत्व और वैश्विक प्रभाव

श्री यंत्र मंदिर विश्व भर से भक्तों और साधकों को आकर्षित करता है, जिनमें अमेरिका, यूरोप, और इंग्लैंड के लोग शामिल हैं। स्वामी विश्वदेवानंद जी के सत्संग में भाग लेने के लिए हजारों लोग हरिद्वार आते थे। उनके शिष्य, जैसे अनंतबोध चैतन्य, ने उनके दर्शन को विश्व स्तर पर फैलाया, विशेष रूप से माल्टा, रूस, लिथुआनिया, स्पेन, इंडोनेशिया, और थाईलैंड जैसे देशों में।

मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह आध्यात्मिक शिक्षा और सामाजिक कल्याण का केंद्र भी है। यहाँ के योग और ध्यान कक्ष पतंजलि की शिक्षाओं पर आधारित हैं, जो साधकों को आत्म-जागृति की ओर ले जाते हैं।

निष्कर्ष

श्री यंत्र मंदिर, हरिद्वार, स्वामी श्री विश्वदेवानंद पुरी जी महाराज की दूरदर्शिता और आध्यात्मिक समर्पण का प्रतीक है। यह मंदिर भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि का संगम है, जो साधकों को शांति, ज्ञान, और आत्म-जागृति प्रदान करता है। चाहे आप एक भक्त हों, साधक हों, या आध्यात्मिक जिज्ञासु, यह मंदिर आपको अपने भीतर की उच्च सच्चाई से जोड़ने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। मां त्रिपुरा सुंदरी और श्री यंत्र की कृपा से, यह स्थान विश्व भर में आध्यात्मिकता का प्रकाश फैला रहा है।

संपर्क जानकारी:

  • पता: श्री यंत्र मंदिर, विश्व कल्याण साधनायतन, कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड, भारत

  • फोन: +91-01334-246918, 9810223465

  • ईमेल: shriyantramandir@gmail.com

Saturday, 17 May 2025

श्री यंत्र मंदिर, हरिद्वार — माँ त्रिपुर सुंदरी की दिव्य उपासना स्थली

 


श्री यंत्र मंदिर, हरिद्वार — माँ त्रिपुर सुंदरी की दिव्य उपासना स्थली

लेखक: अनंतबोध चैतन्य | श्रेणी: तीर्थ, मंदिर दर्शन, श्रीविद्या साधना | भाषा: हिंदी


परिचय

हरिद्वार — गंगा के किनारे बसा वह पवित्र नगर जहाँ हर साँस में अध्यात्म गूंजता है। यहीं स्थित है एक दुर्लभ, जाग्रत और अत्यंत शक्तिशाली मंदिर — श्री यंत्र मंदिर, जो माँ त्रिपुर सुंदरी की श्रीविद्या उपासना का जीवंत केन्द्र है।

यह मंदिर केवल एक भवन नहीं, बल्कि शक्ति, तंत्र और ध्यान का एक दिव्य संगम है।


श्री यंत्र क्या है?

श्री यंत्र को देवी त्रिपुर सुंदरी का साक्षात स्वरूप माना जाता है। यह नवावरण में स्थित एक रहस्यमयी यंत्र है जिसमें ब्रह्मांड की सम्पूर्ण शक्तियाँ संकेंद्रित होती हैं।

🔻 यह यंत्र नौ स्तरों में विभाजित होता है:

  1. त्रैलोक्य मोहन चक्र

  2. सार्वाशा परिपूरक चक्र

  3. सर्वसंक्षोभिणी चक्र

  4. सर्वसौभाग्यदायक चक्र

  5. सर्वार्थ साधक चक्र

  6. सर्वरक्षाकर चक्र

  7. सर्वरोगहर चक्र

  8. सर्वसिद्धिप्रद चक्र

  9. सर्वानंदमयी चक्र (बिंदु में देवी)

श्री यंत्र की उपासना श्रीविद्या साधना का मूल है और यह साधक को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही समृद्धियाँ प्रदान करती है।


श्री यंत्र मंदिर: स्थापत्य और ऊर्जा का चमत्कार

इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ श्री यंत्र को केवल एक प्रतीक रूप में नहीं, बल्कि तांत्रिक विज्ञान और ध्यान के सजीव केंद्र के रूप में स्थापित किया गया है।

🔹 स्थापत्य की विशेषताएँ:

  • मंदिर का संपूर्ण ढाँचा श्री यंत्र के नौ आवरणों के अनुसार बना है।

  • हर परिक्रमा में एक विशेष शक्ति और साधना अनुभव की जाती है।

  • मुख्य गर्भगृह में माँ त्रिपुर सुंदरी की ध्यानमग्न मूर्ति प्रतिष्ठित है, जो शुद्ध तांत्रिक पद्धति से जाग्रत की गई है।


स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज का योगदान

इस मंदिर की स्थापना परम पूज्य स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज ने की थी, जो स्वयं एक सिद्ध तपस्वी, श्रीविद्या उपासक और महान तांत्रिक संत थे। उनकी वर्षों की तपस्या, ध्यान और कृपा से यह स्थान आज एक शक्तिपीठ के रूप में विकसित हो चुका है।

स्वामी जी का मानना था:

"श्री यंत्र केवल पूजा का साधन नहीं, यह आत्मज्ञान और ब्रह्मानंद का प्रवेशद्वार है।"


श्री यंत्र मंदिर का महत्व साधकों के लिए

जो भी भक्त या साधक यहाँ सच्चे मन से आता है, उसे निश्चित ही माँ की कृपा का अनुभव होता है। यहाँ नियमित रूप से होने वाली नवावरण पूजन, ललिता सहस्रनाम, और श्रीचक्र आराधना में भाग लेकर साधक अपने जीवन को दिव्यता की ओर मोड़ सकता है।

यहाँ ध्यान करने मात्र से:

  • मानसिक शांति प्राप्त होती है

  • नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है

  • साधना में गति आती है

  • और माँ त्रिपुर सुंदरी की कृपा से जीवन में स्थायित्व आता है


कैसे पहुँचें?

  • स्थान: श्री यंत्र मंदिर, कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड

  • नजदीकी स्टेशन: हरिद्वार रेलवे स्टेशन (लगभग 5 किमी)

  • समय: प्रातः 5:30 से रात्रि 8:00 तक

  • विशेष पर्व: नवरात्रि, गुरु पूर्णिमा, ललिता जयंती


नमन

श्री यंत्र मंदिर केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक सजीव साधना पीठ है, जहाँ माँ की शक्ति, गुरु की कृपा और तंत्र का रहस्य एक साथ प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकता है।
यदि आप तांत्रिक साधना, ध्यान और आत्मिक उन्नति की खोज में हैं, तो इस मंदिर का दर्शन आपके जीवन में एक नया अध्याय खोल सकता है।

🙏🏼 जय माँ त्रिपुर सुंदरी।  



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Friday, 26 May 2023

Bhagwati Lalita Stuti



1. या देवी सर्वभूतेषु ललिता रूपेण संस्थिता। 
     नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ 
(Yā devī sarvabhūteṣu lalitā rūpeṇa saṁsthita। Namastasyai namastasyai namastasyai namo namaḥ॥)

Translation: Salutations to the Divine Goddess Lalita, who resides in the form of beauty in all beings.

2. चिदानन्दाम्बुजाक्षिया वदनारविन्दे 
    संसार सार पदवीं भवानि नामामि। 
(Chidānandāmbujākṣiyā vadanāravinde 
Samsāra sāra padavīṁ bhavāni nāmāmi।)

Translation: I bow to Bhavani, the lotus-eyed goddess of pure consciousness and bliss, who is the essence of existence and the pinnacle of worldly wisdom.

3. क्षीरोदधि वासिनीं विश्ववन्द्यां वेदमातरं सुद्धस्फटिकोद्भासिनीम्। 
  वन्दे विश्वेश्वरीं तव पादपङ्कजं भक्तानां निकेतां समस्तजगत्सम्भवाम्॥ (Kṣīrodadhi vāsinīṁ viśvavandyāṁ vedamātaraṁ suddhasphaṭikodbhāsinīm। 
Vande viśveśvarīṁ tava pādapankajaṁ bhaktānāṁ niketāṁ samastajagatsambhavām॥)

Translation: I adore Vishveshwari, the goddess who resides in the ocean of milk, who is worshiped by the entire universe, who is the mother of the Vedas, and whose lotus feet are the abode of devotees and the source of creation for the entire world.

4. श्यामां त्रिनयनां सुन्दरीं पञ्चब्रह्मात्मिकां पराम्। 
  त्रैलोक्याम्बा चिदानन्दां ललितां भजे चरणौ तव॥ 
(Śyāmāṁ trinayanāṁ sundarīṁ pañcabrahmātmikāṁ parām। 
Trailokyāmbā cidānandāṁ lalitāṁ bhaje caraṇau tava॥)

Translation: I worship the beautiful Lalita Devi, with a dark complexion, three eyes, and the embodiment of the five cosmic elements. She is the Divine Mother of the three worlds and the source of pure consciousness and bliss.

Tuesday, 27 December 2022

मातंगी महाविद्या


मातंगी नौवीं महाविद्या हैं।


मातंगी हिंदू देवता, ज्ञान के देवता और इसलिए ब्रह्माण्ड के निर्माता भगवान ब्रह्मा की पत्नी से संबंधित हैं। माता का वास्तव में अर्थ है कि "एक विचार" या "एक राय।" मातंगी इसलिए देवता शक्ति है जिसने विचार या मन में प्रवेश किया है। वह विचार के मूर्त होने के कारण शब्द है। वह कान के साथ संबंध और ध्यान केंद्रित करने की हमारी क्षमता से संबंधित है, यही सच्ची समझ की उत्पत्ति है जो शक्तिशाली विचार बनाती है। मातंगी सूचना, प्रतिभा और अनुभव को सबसे अच्छा मानते हैं। वह यह है कि शब्द के देवता और आंतरिक जानकारी के किसी भी बाहरी मुखरता के साथ-साथ सभी प्रकार की कला, संगीत और नृत्य। मातंगी, हिंदू देवता की तरह, वीणा बजाते हैं और सामान्य रूप से संगीत या भारी ध्वनि पर शासन करते हैं, केवल शब्द नहीं। वह गीत की अभिव्यक्ति शैली है। हिंदू देवता की तरह, वह बादल और गड़गड़ाहट का प्रतीक है, आगे समुद्र में चलने वाली नदियों द्वारा। वह यह है कि चलती ध्वनि, नाडा, जो हमारे पूरे शरीर और मस्तिष्क के नीचे से नाजुक चैनलों, नादियों के भीतर बहती है। हालांकि, मातंगी और हिंदू देवता क्षेत्र इकाई पूरी तरह से अलग है। 
मातंगी यह है कि हिंदू देवता की शैली आंतरिक जानकारी के लिए निर्देशित है। वह उसका अंधेरा, रहस्यवादी, उत्साही या जंगली प्रकार है। हिंदू देवता आमतौर पर पूरी तरह से मानक शिक्षा, कला और संस्कृति के देवता हैं। मातंगी असाधारण पर शासन करता है, जो उत्तर अमेरिकी राष्ट्र को मानक की सीमा पर बनाता है। मातंगी एक बहिष्कृत या रचनात्मक व्यक्ति है, जो समाज के मानदंडों के खिलाफ जाता है, जबकि हिंदू देवता ब्राह्मण या सीखी हुई श्रेणी की सूचना और गुण का प्रतिनिधित्व करते हैं जो नीरवता को सही नहीं करता है। मातंगी हिंदू देवता का वह हिस्सा है जो काली की काम करने वाली ऊर्जा से संबद्ध है। गुरु (आध्यात्मिक शिक्षक) शब्द के माध्यम से उत्तर अमेरिकी राष्ट्र को निर्देश देता है। इस प्रकार देवता के बीच उनका वाहन मातंगी है। 
मातंगी गुरु की शिक्षाओं और इसलिए परंपरा का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह दुनिया के भीतर धार्मिक शिक्षा की निरंतरता का प्रतिनिधित्व करती है। उसे संस्कारित करके हम गुरु का सम्मान करते हैं। दूसरों को दिखाने की मांग करने वाले, विशेष रूप से बहुत से व्यक्तियों से बात करने के लिए, मातंगी की कृपा देखने के लिए चाहिए। उपनिषदों के अनुसार, व्यक्ति का सार भाषण है। हम भाषण के माध्यम से स्पष्ट करने के लिए क्या कर रहे हैं कि सभी के अंतिम उत्पाद है कि हम जीवन में खुद को लेने के लिए करते हैं। यह अंतिम अवशेष और चित्रण जो हम भाषण के माध्यम से क्षेत्र इकाई के लिए करते हैं, मातंगी हैं। यह, हालांकि, मानक या आकस्मिक भाषण नहीं है, हालांकि, हमारे दिलों की सबसे गहरी अभिव्यक्ति है। द डिवाइन वर्ड में शक्ति, भावना और उत्सुकता है, लेकिन यह मानवीय भावना नहीं है, हालांकि दिव्य क्लाउड नौ है। 
दैवीय शब्द केवल एक सैद्धांतिक या समझदार कथन नहीं है, बल्कि ऊर्जा और प्रसन्नता का प्रवाह है। यह आनंद मातंगी का दूसरा पक्ष है। मातंगी इसलिए एक जंगली, स्पोर्टी और उत्साही देवता हैं। मातंगी देवता की मंत्रिस्तरीय शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। वह ब्रह्मांड की सर्वोच्च रानी, ​​राजराजेश्वरी या त्रिपुर सुंदरी की परामर्शदाता हैं। उसे मंत्रिनी नाम दिया गया है और सभी मंत्रों में शक्ति है, विशेष रूप से उनके गायन और अभिव्यक्ति में। वह उत्तर अमेरिकी राष्ट्र को मंत्र की सुविधा के माध्यम से सभी विपरीत देवी-देवताओं के साथ बोलने की शक्ति प्रदान करती है। वास्तव में वह सभी प्रकार की सूचना, परामर्श और शिक्षण पर शासन करती है। इन क्षेत्रों में प्रवीणता चाहने वालों को मातंगी का सम्मान करना चाहिए।
मातंगी रंग में गहरे पन्ना अनुभवहीन हैं, गहरी जानकारी और गहरा जीवन-ऊर्जा का रंग, इसके अलावा बुध का रंग है जो बुद्धि को नियंत्रित करता है। वह वीणा बजाती है, जो एक वाद्य यंत्र की तरह है, जो उसकी संगीत और गति को दर्शाता है। वह भव्य है और उत्तरी अमेरिकी राष्ट्र को मोहित करने और वश में करने के लिए कई हथियार बनाती है। इस संबंध में, उसके पास सुंदरी के रूप में गहने और हथियार हैं। वह आमतौर पर अपने हाथों में एक तोता रखने के लिए पूर्वोक्त है, जो प्रकृति में निहित के रूप में भाषण की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। वह रत्नों से निर्मित सिंहासन पर विराजमान है।

Tuesday, 6 December 2022

श्रीविद्या का वास्तविक अर्थ

 श्रीविद्या का वास्तविक अर्थ 


 'श्रीविद्या' वेदों की प्राचीनतम एवं गुह्यतम रहस्य विद्याओं में से अन्यतम विद्या है। यह सिद्धियों का रत्नाकर एवं मोक्ष का अन्यतम साधन है। 'श्रीविद्या' श्री की विद्या है। इसमें निहित 'श्री' शब्द 'शकार, रकार, ईकार एवं बिन्दु' का कल्पवृक्ष है। यही 'षोडशी कला' भी है और भगवती त्रिपुरसुन्दरी भी। लक्ष्मीधर ने ठीक ही कहा है-

 ' षोडशी कला शकार-रेफ-ईकार-बिन्द्वन्तो मन्त्रः । एतस्यैव बीजस्य नाम श्रीविद्येति । श्रीबीजात्मिका विद्या श्रीविद्येति रहस्यम् ।'

 श्रीविद्या 'चन्द्रविद्या' है, चन्द्रकला 'अमृतकला' है, भगवती कुण्डलिनी 'अमृतलहरी' हैं और वे 'श्रीस्वरूपा' (त्रिपुरसुन्दरीस्वरूपा ) हैं।

दश महाविद्याओं में एक महाविद्या षोडशी या श्रीविद्या भी है। इसकी 'त्रिपुरसुन्दरी, राजराजेश्वरी, ललिता, कामेश्वरी, त्रिपुरा, महात्रिपुरसुन्दरी, सुभगा, बालत्रिपुरसुन्दरी' आदि अनेक नामों से पूजा की जाती है। आदि शङ्कराचार्य, भास्करराय, पुण्यानन्दनाथ आदि परमोपासक रहे हैं। पौराणिक परम्परा की दृष्टि से इसके द्वादश सम्प्रदाय और द्वादश उपासक हैं। इनका यन्त्र 'श्रीयन्त्र' कहलाता है। दश या अट्ठारह महाविद्याओं के दो कुल हैं। उनमें से एक 'काली- कुल' है और दूसरा 'श्रीकुल'। श्रीविद्या श्रीकुल से सम्बद्ध है। इस श्रीयन्त्र के मुख्यतः तीन सम्प्रदाय हैं- हयग्रीव सम्प्रदाय, आनन्दभैरव सम्प्रदाय और दक्षिणामूर्ति सम्प्रदाय। श्रीयन्त्र के अन्तरतम में जो 'बिन्दु' होता है, वही है- भगवती त्रिपुरसुन्दरी का स्वरूप, आसन एवं धाम । यही है— ब्रह्माण्ड, प्रकृत्यण्ड, मायाण्ड एवं शक्त्यण्ड का उद्भव-केन्द्र। भगवती का श्रीयन्त्र समस्त सृष्टि का रेखात्मक चित्र तो है ही; साथ ही यह अनन्त देवी-देवताओं, शक्तियों तथा समस्त रचनास्तरों, लोकों एवं आध्यात्मिक सूक्ष्म मण्डलों का भी निवासस्थान है। देवी एवं उनके यन्त्र की आराधना यद्यपि 'पशु, वीर एवं दिव्य' तीन भावो से की जा सकती है; किन्तु दिव्यभाव सर्वोत्तम होता है। शाक्तों के तीन सम्प्र- दाय प्रमुख हैं— कौलमार्ग, मिश्रमार्ग एवं समयमार्ग आदि शङ्कराचार्य समय मार्गी थे। समयमार्गी शाक्त वेदों, पुराणों, सदाचारों एवं विधि-निषेधों में आस्था रखते हैं; किन्तु कौल इस लक्ष्मणरेखा को नहीं मानते। 'समयाचार' श्रीविद्या की आन्तर पूजा का प्रतिपादक है— 'समयाचारो

नाम आन्तरपूजारतिः।' 'परमशिव' के साथ 'शक्ति' का या 'समय' के साथ

 'समया' का सामरस्य कराना ही समयाचारियों का परम लक्ष्य है। श्री सम्प्रदाय अद्वैतवादी दर्शन में विश्वास रखता है; अतः 'अहं देवी न चान्योऽस्मि' की अनुभूति ही उनका काम्य है।

श्रीविद्या के साधनापथ में भक्ति, ज्ञान एवं योग तीनों स्वीकृत हैं। षट्- चक्र-वेधन के द्वारा मूलाधारस्थ कुलशक्ति को जागृत करके उसके वियुक्त प्रियतम 'अकुल' से उसका सम्मिलन कराना भी एक साधन पथ है तथा 'ज्ञानोत्तरा भक्ति' के द्वारा (ज्ञान और भक्ति का सामञ्जस्य करके) विश्वात्मा (भगवती ललिता ) का अपनी आत्मा के रूप में साक्षात्कार करना भी एक साधन-पथ है। ये दोनों पथ श्रीविद्या में स्वीकृत हैं। श्रीविद्या की साधना में 'बहिर्याग' से उत्कृष्टतर 'अन्तर्याग' का ही आत्मीकरण माना जाता है। भगवती महात्रिपुरसुन्दरी समस्त प्राणियों की आत्मा है। वे विश्वातीत भी हैं और विश्व- मय भी। यथार्थतः तो वे 'कामेश्वर' भी हैं और 'कामेश्वरी' भी।

बैन्दवस्थान में सहस्रदल कमल है और उसमें भगवती की पूजा आदर्श पूजा है। चन्द्रमण्डल से विगलित अमृत से सिक्त श्रीचक्ररूपी त्रिपुरा की पुरी में पूजा करना ही यथार्थ पूजा है। बैन्दवपुर ही 'चिन्तामणि गृह' है। सामयिकों के मत में इसी चिन्तामणि गृह में या सहस्रदल कमल में भगवती की पूजा की जानी चाहिये; न कि बाह्य पीठ आदि पर 'समयिनां मते समयस्य सादाख्यतत्त्वस्य सपर्या सहस्रदलकमल एव न तु बाह्ये पीठादी' कहकर लक्ष्मीधर ने भी इसी तथ्य की पुष्टि की है।

Wednesday, 30 November 2022

What is Ten Mahavidyas


The feminine divinity is a powerful entity. From mother nurturers to destroyers, from knowledge to wealth, they encompass every aspect of the physical and spiritual realm. A part of such a powerful entity is the Mahavidya.

The ten Mahavidyas, or Wisdom Goddesses, represent distinct aspects of divinity intent on guiding the spiritual seeker toward liberation. For the devotionally minded seeker, these forms can be approached in a spirit of reverence, love, and increasing intimacy. For a knowledge-oriented seeker, these same forms can represent various states of inner awakening along the path to enlightenment.

A Dasa Mahavidya is one of the 10 wisdom goddesses in Hinduism. The term comes from the Sanskrit, Dasa, meaning “ten,” maha, meaning “great” and Vidya, meaning “knowledge.” Each Mahavidya is a form of the Divine Mother. In Hindu religious scriptures, the Dasa Mahavidya was created after a disagreement between Lord Shiva and Sati (a form of Shakti). The Dasa Mahavidya are as follows:-

1. Kali – The ultimate form of Brahman, "Devourer of Time" (Supreme Deity of Kalikula systems). Mahakali is of a pitch black complexion, darkest than the dark of the Death Night. She had three eyes, representing the past, present and future. She has shining white, fang-like teeth, a gaping mouth, and her red, bloody tongue hanging from there. She has unbound dishevelled hair. She was wearing tiger skins as her garments, a garland of skulls and a garland of rosy red flowers around her neck, and on her belt, she was adorned with skeletal bones, skeletal hands, as well as severed arms and hands as her ornamentation. She has four hands, two of which are empty and two carry a sword and a demon head.

2. Tara – The Goddess as Guide and Protector, or Who Saves. Who offers the ultimate knowledge which gives salvation. She is the goddess of all sources of energy. The energy of the sun is also a gift from her. She manifested as the mother of Lord Shiva after the incident of Samudra Manthan to heal him as her child. Tara is of a light blue complexion. She has dishevelled hair and is wearing a crown decorated with the digit of the half-moon. She has three eyes, a snake coiled comfortably around her throat, wearing the skins of tigers, ornamented with a garland of skulls. She is also seen wearing a belt, supporting her skirt made of tiger skin. Her four hands carried a lotus, scimitar, demon head and scissors. She had her left foot resting on the corpse of Shiva

3. Tripura Sundari (Shodashi) – The Goddess Who is "Beautiful in the Three Worlds" (Supreme Deity of Srikula systems); the "Tantric Parvati" or the "Moksha Mukta". She is the head of Manidweep. Shodashi is seen with a molten gold complexion, three placid eyes, a calm mien, wearing red and pink vestments, adorned with ornaments on her divine limbs and four hands, each holding a goad, lotus, bow and arrow. She is seated on a throne.

4. Bhuvaneshvari – The Goddess as World Mother, or Whose Body is all 14 lokas (whole cosmos). Bhuvaneshwari is of a fair, golden complexion, with three contented eyes as well as a calm mien. She wears red and yellow garments, decorated with ornaments on her limbs and has four hands. Two of her four hands hold a goad and noose while her other two hands are open. She is seated on a divine, celestial throne.

5. Bhairavi – The Fierce Goddess. The female version of Bhairav. Bhairavi is of a fiery, volcanic red complexion, with three furious eyes, and dishevelled hair. Her hair was matted and tied up in a bun, decorated by a crescent moon as well as two devil horns sticking out from each side. She has two protruding tusks hanging out from the ends of her bloody mouth. She wears red and blue garments and is adorned with a garland of skulls around her neck. She also wears a belt decorated with severed hands and bones attached to it. She is also decked with snakes and serpents as her ornamentation, and she is rarely seen wearing any jewellery on her limbs. She has four hands, two of which are open and two of which hold a rosary and a book.

6. Chhinnamasta – The self-decapitated Goddess. She chopped her own head off to satisfy Jaya and Vijaya (metaphors of Rajas and Tamas - part of the trigunas). Chinnamasta is of a red complexion, embodied with a frightful appearance. She had dishevelled hair. She has four hands, two of which hold a sword and another hand holds her own severed head, with three blazing eyes with a frightful mien, wearing a crown, and two of her other hands hold a lasso and a drinking bowl. She is a partially clothed lady, adorned with ornaments on her limbs and wearing a garland of skulls on her body. She is mounted upon the back of a ferocious lion.

7. Dhumavati – The Widow Goddess. Dhumavati is of a very smoky dark brown complexion, her skin is wrinkled, her mouth is dry, some of her teeth have fallen out, her long dishevelled hairs are grey, her eyes are seen as bloodshot and she has a frightening mien, which is seen as a combined source of anger, misery, fear, exhaustion, restlessness, constant hunger and thirst. She wears white clothes, donned in the attire of a widow. She is sitting in a horseless chariot as her vehicle of transportation, and on top of the chariot, there is an emblem of a crow as well as a banner. She has two trembling hands, one hand bestows boons and/or knowledge, and the other holds a winnowing basket.

8. Bagalamukhi – The Goddess Who Paralyzes Enemies. Goddess Bagalamukhi has a molten gold complexion with three bright eyes, lush black hair and a benign mien. She is seen wearing yellow garments and apparel. She is decked with yellow ornaments on her limbs. Her two hands held a mace and the tongue of demon Madanasur, as he was in paralysis. She is depicted seated on either a throne or on the back of a crane.

9. Matangi – the Prime Minister of Lalita (in Srikula systems), sometimes called the "Tantric Saraswati". Matangi is depicted as emerald green in complexion, with lush, dishevelled black hair, three placid eyes and a calm look on her face. She is seen wearing red garments and apparel and is bedecked with various types of ornaments all over her delicate limbs. She is seated on a royal throne and she has four hands, three of which hold a sword or scimitar, a skull and a veena as a musical instrument. Her one hand bestows boons to her devotees.

10. Kamala ( Kamalatmika) – The Lotus Goddess; sometimes called the "Tantric Lakshmi". Kamala is of a molten gold complexion with lush black hair, three bright, placid eyes, and a benevolent mien on her face. She is seen wearing red and pink garments and apparel and is bedecked with various types of ornaments and lotuses all over her limbs. She is seated on a fully bloomed lotus and has four hands, two of which hold lotuses while two others grant her devotees' wishes and assured protection from fear.