Friday 29 January 2021

श्री यन्त्र मंदिर हरिद्वार की स्थापना के समय में लिखे गए श्लोक



विश्वस्मिन् ननु भूतले शुभकरो देव्यालयोऽन्यत्र कः चित्तागारविचार

राशिरचना संपूरको योऽचिरम् । 

अत्रैवाद्वयतत्त्वसिद्धभवने निर्वाणपीठाश्रमे सर्वाशापरिपूरकश्शिवकरो दिव्यालयो विद्यते ॥१ 

 इस धरती पर और इस संसार में इस श्रीमंदिर जैसा शुभ स्थान दूसरा कहां होगा , जहां चित्त रूपी भवन के विचार राशियों की रचना तत्काल पूरी हो जाती हो , अर्थात् मनोरथ जहां तुरंत पूरे हो जाते हैं । यहीं पर निर्वाण पीठ आश्रम में अद्वैत तत्व की सिद्धि का भवन है । सभी आशाओं को पूरा करने वाला शिवकर (कल्याणप्रद) दिव्य आश्रम विद्यमान है। 

यद्वात्सल्यरसेन चैव वसुधा सिक्ता दरीदृश्यते यस्याह्लादकरेण चन्द्रतरणी दिव्यौ च भव्यौ स्मृतौ । 

विश्वं यत्कृपया सदा गुणगणैः सत्यं समुज्जृम्भते तस्याः भीतिनिवारणैककुशलो दिव्यालयो दृश्यते ॥२ 

जिसके वात्सल्य रस से यह सारी धरती सिञ्चित दिखाई देती है। जिसकी आह्लादकारी किरणों से ये सूर्य और चंद्र दिव्य और भव्य शोभित हैं , और जिसकी कृपा से विश्व सदा गुणगणों से पूरित होकर, सत्य को समासादित करता है , उसी श्री का, संसार की भीति निवारण में अत्यंत कुशल, यह दिव्य मंदिर शोभायमान है। 

या ब्रह्मादिसुरेश्वरैः जनिमतां वन्द्यैस्सदा वन्दिता भक्तानां भवभीतिभञ्जनपरा भक्तिप्रदा भैरवी। 

दावाग्निर्भववासनाधिविपिने ज्ञानात्मिका या चिति: सा श्रीमन्दिरचत्वरे विलषते श्रीराजराजेश्वरी ॥३ 

 जो ब्रह्मा आदि सुरेश्वरों के द्वारा, मनुष्य श्रेष्ठों के द्वारा, राजाओं के द्वारा, सदैव वन्दित हैं भक्तों की भव-भय का नाश करने वाली हैं, और भक्ति प्रदान करने वाली भैरवी हैं, संसार की वासना रूपी जंगल के लिए वह दावाग्नि हैं, चिदानंदा व ज्ञानस्वरूपा हैं, वे श्रीराजराजेश्वरी इस मंदिर में विराजमान होती हैं। 

 न भैकाभ्रद्वन्द्वे सुभगतरवर्षे ग्रहपतौ हरिद्वारे तीरे सुरसलिलनद्या: कनखले । महाकुम्भे दिव्ये सुरवरविलासैकभवनम् महादेव्याः भव्यं भुवनकमनं दिव्यमसृजत् ।।४ 

वर्ष २०१० हरिद्वार तीर्थ में , कनखल क्षेत्र में, गंगा किनारे, दिव्य महाकुंभ में, देवताओं का विलासभवन, भव्य और भुवनों में कमनीय , यह महादेवी का श्रीमन्दिर बनाया गया है। 

निर्वाणपीठेश्वरः आचार्यविश्वदेवानन्दयतिः 

श्री श्री यन्त्र मन्दिरे हरिद्वारे श्रियं स्थापयति ॥५ 

निर्वाणपीठेश्वर आचार्य विश्वदेवानन्द यति ने हरिद्वार में श्री श्रीयन्त्र मंदिर में श्री को स्थापित किया। नत्वा गुरुं गणपतिं पितरौ जगदम्बिकासदाशिवौ च सर्वान् साधून् प्रणम्य श्रीमन्दिरं सुसंस्थापयति ॥ श्रीगणेश, गुरु, माता-पिता जगदम्बा और शिव तथा सभी साधु-संतों को प्रणाम करके इस श्रीमन्दिर की स्थापना करते हैं।

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